श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ व्यंग्य # 122 ☆ देश-परदेश – Brain Rot ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आम बोल चाल की भाषा में हम दिन में अनेकों बार ये कहते रहते है, “दिमाग का दही” कर दिया या “भेजा खा गया” आदि। सामने वाला भी कह देता है, कि मेरे को अपना पेट थोड़े ही खराब करना हैं, जो तेरा बेकार वाला दिमाग खाऊंगा।
विगत वर्ष अंग्रेजी के पितामह ऑक्सफोर्ड ने तो brain rot को वर्ष “दो हजार चौबीस का शब्द” तक घोषित कर दिया था। जब ऑक्सफोर्ड किसी को प्रमाणिकता का सर्टिफिकेट जारी कर देवें, तो वो पूरे विश्व को मानना ही पड़ता हैं।
कुछ दिन पूर्व हमारे देश के सामान्य ज्ञान के शिरोमणि कार्यक्रम याने की “के बी सी” में भी इस बाबत प्रश्न दागा गया था। हमारे दिमाग की भी बत्ती जल गई कि ब्रेन रॉट किस बला का नाम हैं।
गूगल बाबा से तुरंत संपर्क किया गया, तो उसने भी जैसे का तैसा जवाब दे दिया।ये जो तुम्हारी हर बात जानने की जिज्ञासा से ही ब्रेन रॉट नामक रोग हो जाता हैं।
गूगल और यू ट्यूब के महासागर में दिन रात डुबकियां लगा कर बेफालतू का ज्ञान प्राप्त करने की होड़ ही ब्रेन ड्रेन के मुख्य कारण हैं। इसके अलावा व्हाट्स ऐप पर चौबीसों घंटे फरवर्डेड मैसेज को आगे से आगे फॉरवर्ड करने की अंध दौड़ तुम्हारे को ब्रेन रॉट से डेड ब्रेन तक जल्दी पहुंचा देगी।
वैसे, इस प्रकार के मैसेज को पढ़ते रहने से भी तो, ब्रेन रॉट ही होता हैं।
हमारा काम तो आपको ज्ञान देना था,आगे आपकी मर्जी।
© श्री राकेश कुमार
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