श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अपनों से अब डर लगता है….” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 166 – अपनों से अब डर लगता है…. ☆

अपनों से अब डर लगता है।

छलछद्मों का घर लगता है।।

*

जिसको दोस्त समझते अपना,

कुछ दिन बाद अदर लगता है।

*

नव पीढ़ी की सोच अलग अब,

रूठे अगर कहर लगता है।

*

सम्मानों की लिखी इबारत,

बिगड़ा-बोल जहर लगता है।

*

टीवी में जब बहसें चलतीं,

ज्ञानी अब विषधर लगता है।

*

न्यायालय में लगीं अर्जियां,

डरा हुआ अंबर लगता है।

*

सदियों बाद सजी अयोध्या,

पावन पवित्र नगर लगता है।

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments