श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “अपनों से अब डर लगता है….” । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 166 – अपनों से अब डर लगता है…. ☆
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अपनों से अब डर लगता है।
छलछद्मों का घर लगता है।।
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जिसको दोस्त समझते अपना,
कुछ दिन बाद अदर लगता है।
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नव पीढ़ी की सोच अलग अब,
रूठे अगर कहर लगता है।
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सम्मानों की लिखी इबारत,
बिगड़ा-बोल जहर लगता है।
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टीवी में जब बहसें चलतीं,
ज्ञानी अब विषधर लगता है।
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न्यायालय में लगीं अर्जियां,
डरा हुआ अंबर लगता है।
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सदियों बाद सजी अयोध्या,
पावन पवित्र नगर लगता है।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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