प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – अपना भारत। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 218

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – अपना भारत…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

अपना भारत है सबसे पुराना

दुनिया का एक अद्भुत खजाना

*

पेड़, पर्वत, नदी और नाले,

खेत, खलिहान वन सब निराले

यहीं गंगा है औ’ वह हिमालय

जिसको दुनिया ने बेजोड़ माना ॥

*

इसकी धरती उगलती है सोना

कला हाथों का मानो खिलौना

आज नई रोशनी में भी दिखता

इसका इतिहास सदियों पुराना ॥

*

जो विदेशों से भी यहाँ आये,

वे भी बस गये, रहे न पराये

 लोगों में है मोहब्बत कुछ ऐसी

जानते सबको अपना बनाना ॥

*

गाँवों में आज भी है सरलता,

 नगरों में तो है नव युग मचलता ।

बढ़ते – विज्ञान को भी हमें ही

प्रेम का रास्ता है दिखाना

*

 सेनानियों ने था देखा जैसा सपना,

 बनाना वैसा भारत है अपना ।

 हमें मिल जुल के बढ़ना है आगे,

देखकर के बदलता जमाना ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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