श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१७ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

हम लोग हम्पी भ्रमण करके शाम को सात बजे होटल वापस पहुंचने वाले थे। तभी राजेश जी ने बस में ही सभी को हनुमान महोत्सव और शोधपत्र वाचन हेतु होटल के कॉन्फ्रेंस हॉल में आठ बजे तक पहुंचने के निर्देश दिए। सभी हल्का आराम कर स्नान आदि करके नियत स्थान पर पहुंच मुख्य अतिथि कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. डी. परमशिवमूर्ति का इंतज़ार करने लगे। मुख्य अतिथि साढ़े आठ बजे पहुँचे।

इस प्रकार हनुमान महोत्सव का मुख्य आयोजन 29 सितंबर को कन्नड़ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. डी. परमशिवमूर्ति के मुख्य आतिथ्य और डॉक्टर राजेश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आरम्भ हुआ। इस अवसर पर रामायण केन्द्र की पत्रिका उर्वशी के हनुमान विशेषांक सहित अन्य पुस्तकों का लोकार्पण भी किया जाएगा। हम्पी विश्वविद्यालय के अनेक प्रोफेसर और यात्रा के साथियों ने हनुमान प्रसंग पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। सभी अतिथियों का अभिनंदन किया गया। हमने भी “सर्वकालिक प्रबंधन गुरु हनुमान” शोध पत्र निम्नानुसार प्रस्तुत किया।

☆ शोध पत्र – सर्वकालिक प्रबंधन गुरु हनुमान ☆

इस समय, जब भारतीय अर्थ व्यवस्था उड़ान भरने (टेक ऑफ़ स्टेज) को तैयार है। प्रबंधन सूत्रों के पौराणिक आधार खोजना हमारी आवश्यकता है कि किस तरह अत्याधुनिक प्रबंधकीय सिद्धांत सनातन वांग्मय साहित्य में समाविष्ट रहे हैं।

हमने स्टेट बैंक में 37 वर्ष सेवा की है, जिसमें से 32 वर्ष प्रशासन-प्रबंधन के विभिन्न उच्चतम पदों पर कार्य निष्पादन किया है। 05 वर्ष बैंक के प्रशिक्षण केंद्र में बैंक प्रबंधकों को प्रबंधकीय प्रशिक्षण दिया है। मध्यभारत ग्रामीण बैंक में तीन वर्ष महाप्रबंधक (प्रशासन) पद पर कार्यरत रहे। इस दौरान नेतृत्व क्षमता और प्रबंधन पर अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया था। उनमें स्टीफन रिचर्ड कोवे (Stephen Richard Covey) द्वारा लिखित पुस्तक “सेवन हैबिट्स ऑफ़ हाईली इफेक्टिव पीपल” एक अद्भुत किताब है। जिसमें व्यवस्थित कार्य निष्पादन द्वारा वांछित परिणाम प्राप्ति हेतु 07 ऐंसी आदतों का उल्लेख किया गया है, जो जीवन में लक्ष्य हासिल करने हेतु आवश्यक होती हैं। यह पुस्तक जीवन प्रबंधन की गीता कही जा सकती है।

यह एक अद्भुत संयोग है कि बाईसवीं सदी में उद्भूत प्रबंधन सिद्धांत त्रेता युग में हनुमान जी द्वारा प्रयोग किए जा रहे थे। इसीलिए पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा मुस्लिम होकर भी हनुमान जी की छोटी सी धातु प्रतिमा अपने साथ रखते थे। यहाँ सनातन दर्शन की सर्वकालिक महानता परिलक्षित होती है। हम इन सात आदतों का विश्लेषण हनुमान जी के जीवन वृत्त से करेंगे।

हम जानते हैं कि एक उम्र के बाद आदमी आदतों का पुंज होता है। लेकिन ये आदतें जिन पर हम बातें करेंगे कुछ अलग क़िस्म की हैं। इन्हें होशोहवास में सीखना और ग्रहण करना पड़ता है। इन आदतों से मानसिक तनाव के बग़ैर उभरती प्रभावशीलता (इफेक्टिवनेस) से वांछनीय परिणाम प्राप्त करके उन परिणामों की सम्भाल की जा सकती है। इनके पालन से तनाव प्रबंधन स्वमेव होता चलता है।

प्रबंधकीय क्षमता का आधार नैतिक आचरण और व्यक्ति में निहित मूल्य होते हैं। लेखक नैतिकता के साथ मूल्यों को संयुक्त करके सार्वभौमिक कालातीत सिद्धांत विकसित करने की बात करता है। ऐसा करने के लिए सिद्धांतों और मूल्यों को अलग करना पड़ता है। लेखक सिद्धांतों को अंतर्वैयक्तिक संबंधों के प्रभावी नियमों के रूप में देखता है, जिसके दर्शन हमें हनुमान जी के व्यक्तित्व में होते हैं। जबकि व्यक्तिपरक आंतरिक मूल्य उनके व्यक्तित्व के अविभाज्य अंग हैं। मूल्य लोगों के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं, जबकि सिद्धांत अंततः परिणाम निर्धारित करते हैं। हनुमान के जीवन वृत्त में कर्तव्य परायणता मूल्य और स्वामीभक्ति सिद्धांत दृष्टिगोचर होते हैं। पुस्तक में सात आदतों को एक श्रृंखला में प्रस्तुत किया गया है, जो निर्भरता से आत्म निर्भरता तदुपरांत परस्पर निर्भरता से सुखद कार्यप्रणाली द्वारा जीवन की राह आसान बनाते हैं।

दो लोग एक ही चीज़ को दो अलग दृष्टिकोण से देख सकते हैं। उन्हें एक बिंदु पर आकर परिपक्वता स्थापित करना होता है। परिपक्वता के तीन क्रमिक चरण हैं: निर्भरता, आत्मनिर्भरता और अन्योन्याश्रय। जन्म के समय, हर कोई निर्भर होता है, और निर्भरता के लक्षण लंबे समय तक बने रह सकते हैं; फिर वह परिवार और मित्रों के सहयोग से आत्मनिर्भर होना आरम्भ करता है। यह परिपक्वता की पहली अवस्था है। इस अवस्था में तीन आदतें जीवन प्रबंधन की नींव रखती हैं।

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पहली तीन आदतों में से प्रत्येक का उद्देश्य  व्यक्ति को आत्म निर्भरता प्राप्त करने में मदद करना है। हम देखते हैं कि हनुमान जी जन्म से ही आत्मनिर्भर हैं। पहली तीन आदतों के बाद की तीन आदतों का उद्देश्य परस्पर निर्भरता प्राप्त करने में मदद करना है, और सातवीं आदत का उद्देश्य इन उपलब्धियों को बनाए रखने हेतु सतत तैयारी में निहित  है। हनुमान के व्यक्तित्व में इन सात आदतों का विस्मयी समावेश देखने को मिलता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हिंदुओं के दर्शन में प्रबंधन के गुणों का समावेश रहा है। जिन्हें कल्पनाशीलता से पुराणों में उतारा गया था। इन्हें जानने और समझने की ज़रूरत है।

पहली तीन आदतों का लक्ष्य शिशुवत पराधीनता से आत्म निर्भरता द्वार आत्म-निपुणता का विकास करना है।

पहली आदत : “सतत सक्रियता” (Proactive)

सक्रियता पहली आदत है, जो हनुमान जी को निरंतर परिणाम प्राप्ति में सहायक होती है। इससे हनुमान जी की सक्रियता का पता चलता है। वे जन्मते ही सूर्य के पास पहुँच जाते हैं। पूरे जीवन निष्क्रिय परिलक्षित नहीं होते हैं।  

सक्रियता का अर्थ है अपने ज्ञान और अनुभवों को सृजनात्मक विश्लेषण बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ कार्यों में सतत लगाए रखना। बाहरी प्रतिक्रिया की जिम्मेदारी लेना, सकारात्मक प्रतिक्रिया देने और स्थिति को सुधारने के लिए पहल करना। जब उपलब्धि का वातावरण बनने लगता है तब विरोधी आपको उत्तेजित करने की कोशिश करते हैं। जैसे लंका जाते समय हनुमान जी को सुरसा उन्हें रोकने की कोशिश करती है। तब हनुमान बुद्धिमत्ता से उसका वचन पूरा करके निकल जाते हैं। “उत्तेजना और प्रतिक्रिया के बीच यह चुनने का अधिकार आपका है कि कैसे प्रतिक्रिया करनी है”, और आपकी सहमति के बिना कोई भी आपकी भावना को चोट नहीं पहुंचा सकता है। लेखक किसी की प्रतिक्रियाओं पर और उसके प्रभाव के केंद्र पर ध्यान केंद्रित करने पर चर्चा करते हैं।

आदत 2: “परिणाम को ध्यान में रखकर शुरुआत करना” (Begin with the end in mind)

लेखक इस बात पर जोर देता है कि आपका ध्यान अंतिम परिणाम पर केंद्रित होना चाहिए अर्थात् जीवन का “एक व्यक्तिगत मिशन” निर्धारित कर उस दिशा में काम करें। आपको संकल्पना करना है कि आपको भविष्य में कैसे याद किया जाना चाहिए? प्रभावी होने के लिए आपको उसी दिशा में सिद्धांतों के आधार पर कार्य करने और अपने मिशन की लगातार समीक्षा करने की आवश्यकता है।

हनुमान जी का मिशन पहले सुग्रीव की सेवा उसके बाद श्रीराम की सेवा में जीवन अर्पण करना था। आज भी उन्हें इसी रूप में स्मरण किया जाता है। आपकी सक्रियता मिशन की दिशा में होनी चाहिए। आपको यह निश्चित करना आवश्यक है कि संसार जीवन की संध्या में आपको किस रूप में जाने- एक प्रबुद्ध आदमी, धनवान व्यक्ति, त्यागी पुरुष या भले दयालु दानी इंसान या लालची दुश्चरित्र व्यक्ति। तदनुसार संकल्पित छवि के अनुसार मिशन आपके जीवन निर्वाह का तरीक़ा हो।

आदत 3: “प्राथमिकता तय करते रहें” (Put first thing first)

आपको अपनी प्राथमिकताओं को अत्यावश्यक (Urgent) और महत्वपूर्ण Important) में बाँट कर कार्य निष्पादन करना चाहिए। इस पद्धति से कार्य निष्पादन के चार युग्म बनते हैं।

1. अत्यावश्यक (Urgent) और महत्वपूर्ण Important)।

कौन सा काम अत्यावश्यक है और कौन सा महत्वपूर्ण है, अत्यावश्यक कार्य का निपटान पहले हो चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। जैसे लंका जाकर सीता माता का पता लगाना और रावण के दरबारियों व निवासियों को आतंकित करना है। जब लक्ष्मण को शक्ति लगती है तब जड़ी-बूटी लाना अत्यावश्यक हो गया था। तब हनुमान भरोसे पर खरा उतरते हैं। यदि आपको यात्रा पर जाना है तो समय पर आरक्षण करवाना अत्यावश्यक है, उसे निपटायें।

2. अत्यावश्यक नहीं लेकिन महत्वपूर्ण

कार्य सूची में अत्यावश्यक कार्य लंबित न हो तब महत्वपूर्ण कार्यों को हाथ में लें, इन्हें पूरा करने की योजना बनाएँ। निठल्ले ना बैठ जाएँ। लंका से लौटकर हनुमान वहाँ की स्थितियों के अनुसार सैनिकों को तैयार करते हैं। आपको यात्रा पर जाना है। आरक्षण हो गया है तो यात्रा का बैग तैयार करके रख लें। अंतिम समय की प्रतीक्षा में तनाव पैदा होता है, ख़ाली समय का सदुपयोग उत्तम नीति है।

3. अत्यावश्यक लेकिन अमहत्वपूर्ण

कोई कार्य अत्यावश्यक है लेकिन महत्वपूर्ण नहीं लगता फिर भी उसे निरंतर करते रहना है, जैसे नियमित व्यायाम, निरंतर अध्ययन और आपसी संबंधों को मज़बूत करना। हनुमान व्यायाम द्वारा तंदुरुस्त रहते हैं और सेना की तैयारी में निरंतर रत रहते हैं।

4. अनावश्यक और अमहत्वपूर्ण।

यह देखा गया है कि लोग अक्सर दूसरों या जिन चीजों पर उनका कोई प्रभाव या अधिकार नहीं होता है, उन फ़िज़ूल कार्यों पर अनावश्यक समय और ऊर्जा खर्च करते रहते हैं। इस तरह के तुच्छ ध्यान भटकाने वाली चीजों पर ध्यान ना देकर आप सार्थक योजना बनाने में संलग्न होते रह सकते हैं। हनुमान कभी निठल्ले नहीं बैठते।

लेखक का मत है कि लोगों को अपना अधिकांश समय पद्धति I और II पर खर्च करना चाहिए, लेकिन कई लोग पद्धति IV में बहुत अधिक समय बिताते हैं। पद्धति तीन निरंतर करने वाले कार्य हैं।

हनुमान के जीवन से सीख मिलती है कि वे ज़रूरत होने कर अत्यावश्यक कार्यों हेतु उपलब्ध होते हैं। अनावश्यक कार्यों में ऊर्जा और समय नष्ट नहीं करते।

ये पहली तीन आदतें ख़ुद के आंतरिक प्रबंधन से संबंधित हैं।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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