श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की  प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना हाथों में ले हाथ। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – आलेख  # 236 ☆ हाथों में ले हाथ…

स्नेह शब्द में इतना जादू है कि इससे इंसान तो क्या जानवरों को भी वश में किया जा सकता है। मेरी  सहेली रमा  जब भी  मुझसे मिलती यही कहती कि कोई मुझे स्नेह  नहीं करता,  मैंने उससे कहा सबसे पहले तुम खुद से प्यार करना सीखो,  जो तुम दूसरों से चाहती हो वो तुम्हें खुद करना होगा  सबसे पहले खुद को व्यवस्थित रखो,  स्वच्छ भोजन,  अच्छे कपड़े, अच्छा साहित्य व सकारात्मक लोगों के साथ उठो- बैठो। जैसी संगति होगी वैसा ही प्रभाव  दिखाई देता है।  जीवन में एक लक्ष्य जरूर होना चाहिए जिससे उदासी हृदय में घर नहीं करती।  हृदय की शक्ति बहुत विशाल है यदि हमने दृढ़ निश्चय कर लिया तो किसी में हिम्मत नहीं कि वो हमारे  फैसले को बदल सके।

कोई भी कार्य शुरू करो तो मन में तरह- तरह के विचार उतपन्न होने लगते हैं क्या करे क्या न करे समझ में ही नहीं आता। कई लोग इस चिंता में ही डूब जाते हैं कि इसका क्या परिणाम होगा बिना कार्य शुरू किए परिणाम की कल्पना करना व भयभीत होकर कार्य की शुरुआत  न करना।

ऐसा अक्सर लोग करते हैं,  पर वहीं कुछ  ऐसे लोग भी होते हैं जो अपने लक्ष्य के प्रति सज़ग रहते हैं और सतत चिंतन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती रहती है।

द्वन्द हमेशा ही घातक होता है फिर बात  जब अन्तर्द्वन्द की हो तो विशेष ध्यान रखना चाहिए क्या आपने सोचा कि जीवन भर कितनी चिन्ता की और इससे क्या  कोई लाभ मिला?

यकीन मानिए इसका उत्तर शत- प्रतिशत लोगों का  नहीं  होगा।  अक्सर हम रिश्तों को लेकर मन ही मन उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि सामने वाले को मेरी परवाह ही नहीं जबकि मैं तो उसके लिए जान निछावर कर रहा हूँ ऐसी स्थिति से निपटने का एक ही तरीका है आप किसी भी समस्या के दोनों पहलुओं को समझने का प्रयास करें। जैसे ही आप  हृदय व सोच को विशाल  करेंगे सारी समस्याएँ स्वतः हल होने लगेंगी।

सारी चिंता छोड़ के,  चिंतन कीजे नाथ।

सच्चे  चिंतन मनन से,  मिलता सबका साथ।।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

 

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