सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – अमराइयों के गाँव…।
रचना संसार # 42 – गीत – अमराइयों के गाँव… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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गीत
प्राण से प्यारे हमें सच्चाइयों के गाँव।
गंग से पावन सुनो अच्छाइयों के गाँव।।
प्रेम अरु करुणा भरी सदभाव की है तान,
मील के पत्थर बने हैं देख इसकी शान।
खोट वादों में नहीं छल छंद से हैं दूर,
नित नयी सौगात मिलती प्रेम से भरपूर।।
भोर की उतरी किरण अँगनाइयों के गाँव,
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मीत चहके कोकिला मधुकर करे गुंजार।
खिल रहा कचनार है फागुन करे मनुहार।।
फूलती सरसों यहाँ धरती करे शृंगार।
झूमता महुआ बड़ा मादक हुआ संसार।।
अब महकते देखिए अमराइयों के गाँव।
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प्रीति की गागर लिए वह रूपसी गुलनार।
लाज – बंधन में बँधी भूले नहीं संस्कार।।
सभ्यता जीवित अभी होता सदा आभास।
हैं शिवाला भी यहाँ पर और है विश्वास।।
आस की गठरी लदी पुरवाइयों के गाँव।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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