श्री संजय भारद्वाज
(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के लेखक श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है। साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको पाठकों का आशातीत प्रतिसाद मिला है।”
हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों के माध्यम से हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ संजय उवाच # 281 ☆ उड़ गई गौरैया…
तोता उड़, मैना उड़, चिड़िया उड़.., सबको याद तो होगा बचपन का यह खेल। विडंबना देखिए कि खेल में गौरैया उड़ाने वाले मनुष्य ने खेल-खेल में चिड़िया को अनेक स्थानों से हमेशा के लिए उड़ा दिया।
आज विश्व गौरैया दिवस है। अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझती गौरैया पर औपचारिकतावश विमर्श नहीं अपितु यथासंभव जानकारी एवं जागृति इस आलेख का ध्येय है।
पर्यावरणविदों के अनुसार भारत में गोरैया की 5 प्रजातियाँ मिलती हैं। एक समय था कि गौरैया हर आँगन, हर पेड़, हर खेत में बसेरा किये मिलती थी। पिछले तीन दशकों में विशेषकर महानगरों में गौरैया की संख्या में 70% से 80% तक कमी आई है। महानगरों में बहुमंज़िला गगनचुंबी इमारतों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इन इमारतों की प्रति स्क्वेयर फीट की ऊँची कीमतों ने औसत 14 सेंटीमीटर की चिड़िया के लिए अपने पंजे टिकाने की जगह भी नहीं छोड़ी।
गौरैया फसलों पर लगने वाले कीड़ों को खाती हैं। अब खेती की ज़मीन बेतहाशा बिक रही है। जहाँ थोड़ी-बहुत बची है, वहाँ फसलों पर कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है। घास का बीज चिड़िया का प्रिय खाद्य रहा है। घास भी हमने कृत्रिम कर डाली। छोटे झाड़ीनुमा पेड़ चिड़िया के बसेरे थे, जो हमने काट दिए। सघन वृक्ष काटकर डेकोरेटिव पेड़ खड़े किए। हमने केवल अपने लिए उपयोगी या अनुपयोगी का विचार किया। हमारी स्वार्थांधता ने प्रकृति के अन्य घटकों को दरकिनार कर दिया।
सुपरमार्केट और मॉल के चलते पंसारी की दुकानों में भारी कमी आई है। खुला अनाज नहीं बिकने के कारण चिड़िया को दाना मिलना दूभर हो गया। चिड़िया जिये तो कैसे जिये? और फिर मोबाइल टॉवर आ गये। इन टॉवरों के चलते दिशा खोजने की गौरैया की प्रणाली प्रभावित होने लगी। साथ ही उनकी प्रजनन क्षमता पर भी घातक प्रभाव पड़ा। अधिक तापमान, प्रदूषण, वृक्षों की कटाई और मोबाइल टॉवर के विकिरण से गौरैया का सर्वनाश हो गया।
कदम-कदम पर दिखनेवाली गौरैया के विलुप्त होने के संकट का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अनेक महानगरों में इनकी संख्या दो अंकों तक सीमित रह गई है।
हमारे पारम्परिक जीवनदर्शन की उपेक्षा ने भी इस संकट को बढ़ाया है। हमारे पूर्वजों की रसोई में गाय, और कुत्ते की रोटी अनिवार्य रूप से बनती थी। हर आँगन में पंछियों के लिए दाना उपलब्ध था। हमने उनका भोजन छीना। हमने कुआँ, तालाब सब पाट कर अपने-अपने घर में नल ले लिये पर चिड़िया और सभी पंछियों के लिए पानी की व्यवस्था करना ज़रूरी नहीं समझा।
घर के घर होने की एक अनिवार्य शर्त है गौरैया का होना। गौरैया का होना अर्थात पंख का होना, परवाज़ का होना। गौरैया का होना जीवन के साज का होना, जीवन की आवाज़ का होना।
पंख, परवाज़, साज, आवाज़ के लिए सबका साथ वांछनीय है। अनुरोध है कि साल भर चिड़ियों के लिए अपनी बालकनी या टेरेस पर दाना-पानी की व्यवस्था करें। अपने परिसर में चिड़ियों के घोंसला बना सकने लायक वातावरण बनाएँ। यदि पौधारोपण संभव है तो भारतीय प्रजाति के पौधे लगाएँ।
स्मरण रहे कि गौरैया को उड़ाया हमने है तो उसे लौटा लाने का दायित्व भी हमारा ही है।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
15 मार्च से आपदां अपहर्तारं साधना आरम्भ हो चुकी है
प्रतिदिन श्रीरामरक्षास्तोत्रम्, श्रीराम स्तुति, आत्मपरिष्कार मूल्याकंन एवं ध्यानसाधना कर साधना सम्पन्न करें
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈