श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “जंगल अंगार हो गया”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 97 ☆ जंगल अंगार हो गया ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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टेसू क्या फूल गए
जंगल अंगार हो गया।
सज गई धरा
नवल वधू सी
वृक्षों ने पहने
परिधान राजसी
सरसों पर मस्त मदन
पीत वसन डाल सो गया।
महुआ रस गंध
बौराया आम
नील फूल कलसी
भेजती प्रणाम
सेमल के सुर्ख गाल
अधरों पर प्यार बो गया ।
थिरक रही हवा
घाघरा उठाकर
चहक रहे पंछी
बाँसुरी बजाकर
तान फागुनी सुनकर
मौसम गुलज़ार हो गया।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈