सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “ सुन ऐ जिंदगी! ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 34 ☆
☆ सुन ऐ जिंदगी! ☆
सुन ऐ जिंदगी!
तुम चाहती थी ना
कि मैं डूब जाऊँ
यह लो आज मैं
समंदर की गहराई में हूँ ।
तुम चाहती थी ना
कि मैं छुप जाऊँ
यह लो आज मैं
समंदर की भँवर में हूँ ।
तुम चाहती थी ना
कि मैं बिखर जाऊँ
यह लो आज मैं
रेगिस्तान में बिखर गई हूँ ।
तुम चाहती थी ना
कि मैं बिसर जाऊँ
यह लो आज दुनिया ने
मुझे बिसरा दिया है ।
सुन ऐ जिंदगी!
अब तो तुम खुश हो ना??
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684