श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “हम कब बोलेंगे  ?”।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 213 ☆

☆ # “हम कब बोलेंगे ?” # ☆

जीना इसी का नाम है तो

क्यों जी रहे हैं हम ?

हर पल हर घड़ी

यह जहर क्यों पी रहे हैं हम ?

 

चारों तरफ एक

खामोशी बढ़ रही है

खामोशी नई-नई

कहानियां गढ़ रही है

 

आंखों में आंसू हैं

चेहरे पर डर का साया है

किसने यह भयानक आतंक

हर जगह फैलाया है

 

ऐसे माहौल में

कोई कैसे सांस लेगा

इस घुटन से घबराकर

कमजोर तो अपना गला

खुद ही फांस लेगा

 

हम आजाद हैं पर

कैदी सा जी रहे हैं

भावनाओं का गला घोट

होठों को सी रहें हैं

 

कब हमारी खामोशी टूटेगी ?

कब गुलामी की बेड़ियां छूटेगी ?

कब तक हमारी दुनिया

यूं ही लुटेगी ?

कब हमारे अंदर

आक्रोश की चिंगारी

बारूद बन फूटेगी ?

 

कब हम अपना मुंह खोलेंगे ?

अन्याय के खिलाफ खड़े होकर

हम कब बोलेंगे ?

हम कब बोलेंगे ? /

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  ≈

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