स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बढ़त जात उजयारो…।)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 231 – बढ़त जात उजयारो…
(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)
बढ़त
जान उजयारी
मानों उठत जात है घुँघटा
बढ़त जात उजयारो।
मेंहदी रची, दौउ हाँतन में
जैसे सजे किवारे
कारे कैस लहरिया लैरए
नागिन से मतवारे ।
गोरो आँग दमक दरसावै
नैंनन अत सुखकारौ ।
बढ़त जात उजयारौ।
दोउ हाँत उठे ऊपर खौ
जैसे
जोत-जबारें
घूँघट कोर समारें ऐसे ।
जैसे दिया समारें ।
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© डॉ. राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈