श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “जय माता दी ”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 222 ☆
🌻नवरात्रि विशेष🌻 🙏जय माता दी 🙏🌧️
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सुंदर सजा दरबार माँ, पावन लगे सब रात है।
आराधना में जागते, देखो सजी नवरात है।।
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गल मुंड डाले कालिका, रण भेद करती शोर है।
गाते सभी माँ वंदना, कितनी सुहानी भोर है।।
शंकर कहें मैं जानता, है क्रोध में गौरी यहाँ।
मारे सभी दानव मरे, बच पाएगा कोई कहाँ।।
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जब युद्ध में चलती रही, दो नैन जलते राह में।
कर दूँ सभी को नाश मैं, बस देव ही नित चाह में।।
ले चल पड़ी है शस्त्र को, देखें दिशा चहुँ ओर है।
अधरो भरी मुस्कान है, बाँधे नयन पथ डोर है।।
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माँ कालिके कल्याण कर, हम आपके चरणों तले।
हर संकटों को दूर कर, बाधा सभी अविरल टले।।
विनती यही है आपसे, हर पल रहे माँ साथ में।
करुणा करो माँ चंडिके, स्वीकार हो सब हाथ में।।
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ये सृष्टि है गाती सदा, करती रहे गुणगान को।
जगतारणी माँ अंबिके, रखना हमारी शान को।।
नित दीप ले थाली सजी, करती रहूँ मैं आरती।
हो प्रार्थना स्वीकार माँ, भव पार तू ही तारती।।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈