आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे।
इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 95 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 1 ☆ आचार्य भगवत दुबे
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केवल तन रहता है घर में
सदा रहे मन किन्तु सफर में
बाहर नहीं दिखाई देता
जो बैठा है अभ्यंतर में।
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हर साजो-सामान तुम्हारा,
यश वैभव सम्मान तुम्हारा,
माँ जैसे अनमोल रत्न बिन,
नाहक है अभिमान तुम्हारा।
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जीवन के संघर्ष पिता थे,
सारे उत्सव हर्ष पिता थे,
संस्कृतियों के संगम थे वे,
पूरा भारतवर्ष पिता थे।
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बच्चों की अठखेली अम्मा,
दुःख की संग सहेली अम्मा,
प्यासों को शीतल जल जैसी,
भूखों को गुड़-ढेली अम्मा।
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https://www.bhagwatdubey.com
© आचार्य भगवत दुबे
82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈
अति सुन्दर एवं मनभावन रचना!