श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 126 ☆ देश-परदेश – Marry a Colleague ☆ श्री राकेश कुमार ☆
जब तक विवाह नहीं हो जाता है, तब तक पेरेंट्स परेशान रहते हैं। विवाह हो जाने पर “विवाहित युगल” परेशान रहते हैं। इसी समस्या को लेकर बेंगलुरु के युवाओं ने इसके समाधान हेतु एक नई पहल आरम्भ कर दी है।
विगत कुछ वर्षों से युवा लड़के और लड़कियां समान रूप से किसी संस्था में कार्य करते हैं। रेल के इंजन चालक से देश के सुरक्षा बलों में महिलाएं पूर्णतः सहभागी बन चुकी हैं।
पति और पत्नी दोनों का नौकरी करना और अपने पेरेंट्स के बिना रहने से अनेक कठिनाइयां उनकी जिंदगी को दूभर बना देती है।
एक जापानी कांसेप्ट “क्वालिटी सर्कल” कार्यालय की समस्या को सुलझाने के लिए प्रचलन में हुआ करता था। उसी से प्रेरणा लेकर आज के युवा अपने कुलीग से ही विवाह कर बहुत सारी समस्याओं का निराकरण स्वत: कर सकते हैं।
पूर्व में भी कुलीग से प्रेम विवाह या पेरेंट्स द्वारा भी विवाह तय किया जाता रहा है। ये कोई नई बात तो नहीं है, परंतु इसके होने वाले लाभ की चर्चा आजकल सोशल मीडिया में खूब हो रही है।
आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक सुविधाओं की चर्चा में घर किराए से लेकर यातायात में शत प्रतिशत बचत की बात की जा रही है। एक ही टिफिन में दोपहर के भोजन से भविष्य में युगल के बच्चों को पति और पत्नी दोनों रेफर कर, दोहरा लाभ अर्जित कर सकते हैं।
दोनों द्वारा “घर से कार्य” करने पर तो ये लाभ की मात्रा तो कई गुना बढ़ जाएगी। एक ही कार्यालय में काम करने से एक दूसरे पर शक सुबहा की संभावना भी नगण्य हो जाती है। इतनी सुख सुविधाओं के कारण “marry a colleague” एक बहुत अच्छा आइडिया कहा जा सकता है।
© श्री राकेश कुमार
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