श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है सामाजिक विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा मौन रामलला”।) 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 223 ☆

🌻लघु कथा🌻 🛕 मौन रामलला🛕

बरसों से अस्पताल के चक्कर महंगे ईलाज, गाँव का झाड़ फूँक, जगह-जगह  देवी देवताओं की मन्नत, करते-करते वह थक चुकी थी।

शायद उसके आँसू और हृदय की वेदना को समझने के लिए, अभी रामलला मौन है। यही कहकर सविता अपने आप को धीरज बाँधती थी।

भरा- पूरा परिवार, परिवार के ताने और शायद बच्चें की किलकारी के लिए तरसती सविता। वेदना से भरी।

पतिदेव की सांत्वना सब कुछ समय आने पर ठीक होगा। हजारों की संख्या में मंदिर में आज भक्त भगवान श्री रामनवमी का महोत्सव मना रहे थे। पूजा की थाल लिए पीछे खड़ी सविता अखियाँ बंद परंतु अश्रुं की धार अविरल बह रही थी। इतनी भीड़ में भी वह अकेली शायद प्रभु भी नहीं, मौन सिर्फ मौन।

थककर वह बैठ गई। अब तो दर्शन की चाहत भी नहीं, बस समय को जाते हुए देख रही थी। अचानक दस वर्ष का बालक सविता के आँखों को पोछते गले में बाहें डाल कहने लगा— माँ जल्दी दर्शन करो रामलला दिखने लगे। वह आवाज चारों तरफ देखने लगी। आश्चर्य से न जाने कहाँ से यह बच्चा इतनी भीड़ में आ गया। पीछे पतिदेव कंधे पर हाथ रख मुस्कुराते कहने लगे सविता यह तुम्हारा मौन रामलला।

बस स्वागत करो। सविता को समझते देर ना लगी। आज पतिदेव ने जो कर दिखाया। प्रभु राम को हाथ जोड़ थाली में रखा पुष्प हार पतिदेव को पहना, माथे तिलक लगा चरणों पर गिर पड़ी।

बस एक ही शब्द निकला – – –

मेरे रामलला, मौन भी एक कला। 🛕🙏

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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