श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हमप्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’  जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री प्रभाशंकर उपाध्याय जी द्वारा लिखित  इनविजिबल इडियटपर चर्चा।

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 175 ☆

“इनविजिबल इडियट” – व्यंग्यकार… श्री प्रभाशंकर उपाध्याय ☆ चर्चा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

पुस्तक चर्चा

चर्चित व्यंग्य संग्रह.. इनविजिबल इडियट

व्यंग्यकार .. श्री प्रभाशंकर उपाध्याय

भावना प्रकाशन, दिल्ली

मूल्य 300रुपए, पृष्ठ 164

चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

श्री प्रभाशंकर उपाध्याय

चर्चित कृति इनविजिबल इडियट, सामयिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को व्यंग्य के तीखे तेवर के साथ प्रस्तुत करती है। लेखक ने समाज में व्याप्त विसंगतियों, राजनीतिक पाखंड, साहित्यिक अवसरवादिता और मानवीय दुर्बलताओं को बेबाकी से उजागर किया है।

विषयवस्तु और व्यंग्य की प्रकृति

किताब में शामिल किए गए व्यंग्य लेखों से झलकता है कि इस कृति में अपनी पुरानी व्यंग्य पुस्तकों के क्रम में ही प्रभा शंकर उपाध्याय जी ने समकालीन सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों पर चोट की है। “सरकार इतने कदम उठाती है मगर, रखती कहाँ है?” और “गुमशुदा सरकार” जैसे लेखों में व्यंग्यकार ने प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे की विसंगतियों को तीखे कटाक्ष के साथ उठाया है। वहीं “कोई लौटा दे मेरे बालों वाले दिन” और “पके पपीते की तरह आदमी का टूटना” जैसे शीर्षक मानवीय भावनाओं और जीवन की नश्वरता को हास्य और व्यंग्य के मेल से प्रस्तुत करते हैं।

भाषा और शिल्प

व्यंग्य-लेखन में भाषा की धार सबसे महत्वपूर्ण होती है, और यहां व्यंग्यकार ने सहज, प्रवाहमयी और चुटीली भाषा का प्रयोग किया है। “भेड़ की लात”, “घुटनों तक, …. और गिड़गिड़ा”, “जुबां और जूता दोनों ही सितमगर” जैसे शीर्षक ही भाषा में रोचकता और पैनेपन की झलक देते हैं।

हास्य और विडंबना का संतुलन

एक अच्छा व्यंग्यकार केवल कटाक्ष नहीं करता, बल्कि हास्य और विडंबना पर कटाक्ष का संतुलित उपयोग करके पाठक को सोचने पर मजबूर कर देता है। “फूल हँसी भीग गई, धार-धार पानी में”, “तीन दिवस का रामराज”, “लिट्रेचर फेस्ट में एक दिन” जैसे लेख संकेत करते हैं कि किताब में व्यंग्य के माध्यम से समाज के गंभीर पहलुओं को हास्य के साथ जोड़ा गया है।

समकालीनता और प्रासंगिक लेखन

लेखों के शीर्षकों से स्पष्ट है कि इसमें समकालीन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर तीखी टिप्पणियाँ हैं। “डेंगू सुंदरीः एडीस एजिप्टी”, “भ्रष्टाचार को देखकर होता क्यों हैरान?” और “अंगद के पांव” आदि व्यंग्य लेख आज के दौर की ज्वलंत समस्याओं को हास्य-व्यंग्य के जरिये प्रस्तुत करते है।

व्यंग्य के मूल्यों की पड़ताल

पुस्तक केवल समाज और राजनीति पर ही कटाक्ष नहीं करती, बल्कि साहित्यिक हलकों की भी पड़ताल करती है। “साहित्य का आधुनिक गुरु”, “ताबड़तोड़ साहित्यकार”, “साहित्य-त्रिदेवों का स्तुति वंदन” जैसे शीर्षक यह दर्शाते हैं कि इसमें साहित्यिक दुनिया के भीतर की राजनीति और दिखावे पर भी व्यंग्य किया गया है।

यह किताब व्यंग्य-साहित्य के मानकों पर खरी उतरती है। इसमें हास्य, विडंबना, कटाक्ष और सामाजिक जागरूकता का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता है। भाषा प्रवाहमयी और चुटीली है, लेखों में पंच वाक्य भरपूर हैं। विषयवस्तु समकालीन मुद्दों से गहराई से जुड़ी हुई है। अगर लेखों का शिल्प और कथ्य शीर्षकों की रोचकता के अनुरूप है। मैने यह पुस्तक व्यंग्य की एक प्रभावशाली कृति के रूप में पाई है।

चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

समीक्षक, लेखक, व्यंगयकार

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३, मो ७०००३७५७९८

readerswriteback@gmail.कॉम, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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