आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे।
इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 96 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 2 ☆ आचार्य भगवत दुबे
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घर की चमक-दमक बहुएँ हैं,
उत्सव की रौनक बहुएँ हैं,
संस्कृति के सुरभित फूलों की
देती हमें महक बहुएँ हैं।
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सृष्टि के सद्ग्रन्थ की पावन रहल हैं बेटियाँ,
पारिवारिक पुण्य तरु का श्रेष्ठ फल हैं बेटियाँ,
प्रीति, ममता और करुणा की त्रिवेणी हैं यही
दो कुलों के संगमों का तीर्थ जल हैं बेटियाँ।
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माँ, बहिन, बेटी, बहू, पत्नी कहातीं नारियाँ
फर्ज ये हर रूप में अपना निभाती नारियाँ,
शक्ति हैं ये आस्था अपनत्व के अहसास की
इस धरा पर स्वर्ग का वैभव रचाती नारियाँ।
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बाहर नहीं बताना घर की बुराईयों को,
लज्जित कभी न करना अपने ही भाईयों को,
बेटी-बहू के सँग-सँग बहिनों को मान देना
यह मातृशक्ति देती ताकत कलाईयों को।
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© आचार्य भगवत दुबे
82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈