आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक पूर्णिका – मधुमालती)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 230 ☆

☆ पूर्णिका – मधुमालती ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

हँसती है मधुमालती

फँसती है मधुमालती

.

साथ जमाना दे न दे

चढ़ती है मधुमालती

.

देख-रेख बिन मुरझकर

बढ़ती है मधुमालती

.

साथ जमाना दे न दे

चढ़ती है मधुमालती

.

लाज-क्रोध बिन लाल हो

सजती है मधुमालती

.

नहीं धूप में श्वेत लट

कहती है मधुमालती

.

हरी-भरी सुख-शांति से

रहती है मधुमालती

.

लव जिहाद चाहे फँसे

बचती है मधुमालती

.

सत्नारायण कथा सी

बँचती है मधुमालती

.

हर कंटक के हृदय में

चुभती है मधुमालती

.

बस में है, परबस नहीं

लड़ती है मधुमालती

.

खाली हाथ, न जोड़ कुछ

रखती है मधुमालती

.

नहीं गैर की गाय को

दुहती है मधुमालती

.

परंपराएँ सनातन

गहती है मधुमालती

.

मृगतृष्णा से दूर, हरि

भजती है मधुमालती

.

व्यर्थ न थोथे चने सी

बजती है मधुमालती

.

दावतनामा भ्रमर का

तजती है मधुमालती

.

पवन संग अठखेलियाँ

करती है मधुमालती

.

नहीं और पर हो फिदा

मरती है मधुमालती

.

अपने सपने ठग न लें

डरती है मधुमालती

.

रिश्वत लेकर घर नहीं

भरती है मधुमालती

.

बाग न गैरों का कभी

चरती है मधुमालती

.

सूनापन उद्यान का

हरती है मधु मालती

.

बिना सिया-सत सियासत

करती है मधु मालती

.

नेह नर्मदा सलिल सम

बहती है मधुमालती

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

९.४.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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