डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है नका एक समसामयिक गीत एकांत के इस शोर में।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 45 ☆
☆ एकांत के इस शोर में ☆
एकांत के इस शोर में
संशय जनित सी भोर में
दिवसाभिनंदन गान है
दिग्भ्रमित सा इंसान है।।
है मनुजता पर चोट ये
किसकी नियत में खोट ये
क्या सोच कर किसने किया
है संक्रमित विस्फोट ये,
खाली समय,भावी समय का
कर रहा अनुमान है।
दिग्भ्रमित सा इंसान है।।
एकांत में सपने बुनें
खाली समय में सिर धुनें
या चित्त को एकाग्र कर
बिखरे हुए मोती चुनें,
नैराश्य है इक ओर,दूजी ओर
शुभ सद्ज्ञान है।
दिग्भ्रमित सा इंसान है।।
विस्मय हवाओं में भरा
भयभीत है सारी धरा
उपचार अनुमानित चले
न, निदान है कोई खरा,
अध्यात्म-संस्कृति बोध के संग
खोज में विज्ञान है।
दिग्भ्रमित सा इंसान है।।
विश्वास है इस यक्ष को
मावस अंधेरे पक्ष को
मिलकर समूल मिटायेंगे
फिर से जुटेंगे लक्ष्य को,
आत्म संयम,आस्था
इस देश की पहचान है।
दिग्भ्रमित सा इंसान है।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 989326601