सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम नवगीत – कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ…।
रचना संसार # 45 ☆
☆ नवगीत – कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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उदासीन मन मूक हैं सब दिशाएँ।
कहें क्या सभी आज अपनी व्यथाएँ।।
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धुआं चिमनियों से निकलने लगा है।
लपट आग की है हृदय में दगा है।।
बिके खेत सारे न चुकता उधारी।
हुए बंधुआ पर न भरती तगारी।।
कटी शाख बरगद तड़पती लताएँ।
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बुने जाल मकड़ी समाधान कैसा।
शपथ भूलते सत्य भगवान पैसा।।
हिरण काँपते अब सजी हैं मचानें।
मुनादी हुई बंद हैं सब दुकानें।।
हुए आज लाचार हैं आपदाएँ।
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समाधान कैसा करे काँव कागा।
विदेशी चलन है स्वदेशी न जागा।।
बिना पंख उड़ने चली देख मैना।
क्षितिज से गिरी रो रहे खूब नैना।।
परीक्षा घड़ी मौन हैं सब शिलाएँ
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न गंगा बची है न यमुना नदी भी।
बहे मैल नित मौन नव ये सदी भी।।
शरद रश्मियों के छिपे हैं उजाले।
बहुत भूख हैं पर न मिलते निवाले।।
चले चूर मद देख पछुआ हवाएँ।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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