स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बगरी जोत जुनाई।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 233 – बगरी जोत जुनाई… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से) 

चाँदी बरस रही नगरी में

बगरी जोत जुनाई |

 

कोउ कहे सूरज को उन्ना

धरती आन परो |

कोउ कहे ऊसा के कर सें

कलसा ढरक परो ।

 

जित्ते मों हैं उत्ती बातें

किनपे कान धरो

ठंडी साँस भरत तो जियरा

दियना तेल परो ।

 

उजयारे की लालटेन लयें

कौन कहाँ सें आई ।

बगरी जोत जुनाई |

 

धन्न धन्न बा दहटी-आँगन

जी ने तुमें दओ ।

रूप समेंटौ नित नेंनन में

पारा बगर गओ ।

 

प्यासे लिंघा नदी आई हो

कब औ किते अओ

कौन डगरियन बेला फूलो

हमने जान लओ।

 

पढ़े लिखिन की अकल हिरानी

भूले अच्छर ढाई।

बगरी जोत जुनाई।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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