आचार्य भगवत दुबे
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर आचार्य भगवत दुबे जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया है।सीमित शब्दों में आपकी उपलब्धियों का उल्लेख अकल्पनीय है। आचार्य भगवत दुबे जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की विस्तृत जानकारी के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें 👉 ☆ हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ आचार्य भगवत दुबे – व्यक्तित्व और कृतित्व ☆. आप निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। हमारे विशेष अनुरोध पर आपने अपना साहित्य हमारे प्रबुद्ध पाठकों से साझा करना सहर्ष स्वीकार किया है। अब आप आचार्य जी की रचनाएँ प्रत्येक मंगलवार को आत्मसात कर सकें गे।
इस सप्ताह से प्रस्तुत हैं “चिंतन के चौपाल” के विचारणीय मुक्तक।)
साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ कादम्बरी # 99 – मुक्तक – चिंतन के चौपाल – 5 ☆ आचार्य भगवत दुबे
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मुरझाये देखती कभी चेहरे जो लाल के,
रखती कलेजा सामने थी माँ निकाल के,
बीमार वृद्ध माँ को उसके समर्थ बेटे
असहाय छोड़ देते हैं घर से निकाल के।
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कोई तीरथ न माँ के चरण से बड़ा,
माँ का आँचल है पूरे गगन से बड़ा,
माँ की सेवा को सौभाग्य ही मानना
कोई वैभव न आशीष धन से बड़ा।
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सम्बन्धों के तोड़े जिनने धागे होंगे,
तृष्णा में घर-द्वार छोड़कर भागे होंगे,
छाया कहीं न पायेंगे वे ममता वाली
पछताते वे जाकर वहाँ अभागे होंगे।
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खुद रही भींगी हमें सूखा बिछौना दे दिया
भूख सहकर भी हमें धन दृव्य सोना दे दिया
कर दिया सब कुछ निछावर माँ ने बेटों के लिए
वृद्ध होने पर उसे, बेटों ने कोना दे दिया।
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© आचार्य भगवत दुबे
82, पी एन्ड टी कॉलोनी, जसूजा सिटी, पोस्ट गढ़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈