हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य #1 ☆ अनचीन्हे रास्ते ☆ – डॉ. मुक्ता
डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। हम डॉ. मुक्ता जी के हृदय से आभारी हैं , जिन्होंने साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया। अब आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनों से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी कविता “अनचीन्हे रास्ते”। डॉ मुक्ता जी के बारे में कुछ लिखना ,मेरी लेखनी की क्षमता से परे है। )
डॉ. मुक्ता जी का संक्षिप्त साहित्यिक परिचय –
- राजकीय महिला महाविद्यालय गुरुग्राम की संस्थापक और पूर्व प्राचार्य
- “हरियाणा साहित्य अकादमी” द्वारा श्रेष्ठ महिला रचनाकार के सम्मान से सम्मानित
- “हरियाणा साहित्य अकादमी “की पहली महिला निदेशक
- “हरियाणा ग्रंथ अकादमी” की संस्थापक निदेशक
- पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्री प्रणव मुखर्जी जी द्वारा ¨हिन्दी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार” से सम्मानित । डा. मुक्ता जी इस सम्मान से सम्मानित होने वाली हरियाणा की पहली महिला हैं।
- साहित्य की लगभग सभी विधाओं में आपकी 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। कविता संग्रह, कहानी, लघु कथा, निबंध और आलोचना पर लिखी गई आपकी पुस्तकों पर कई छात्रों ने शोध कार्य किए हैं। कई छात्रों ने आपकी रचनाओं पर शोध के लिए एम फिल और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
- कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सम्मानित
- सेवानिवृत्ति के बाद भी आपका लेखन कार्य जारी है और कई पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं।
☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – #1 ☆
☆ अनचीन्हे रास्ते ☆
मैं जीना चाहती हूं
अनचीन्हे रास्तों पर चल
मील का पत्थर बनना चाहती हूं
क्योंकि लीक पर चलना
मेरी फ़ितरत नहीं
मुझे पहुंचना है,उस मुक़ाम पर
जो अभी तक अनदेखा है
अनजाना है
जहां तक पहुंचने का साहस
नहीं जुटा पाया कोई
मैं वह नदी हूं
जो राह में आने वाले
अवरोधकों को तोड़
सबको एक साथ लिए चलती
विषम परिस्थितियों में जीना
संघर्ष की राह पर चलना
पर्वतों से टकराना
सागर की लहरों से
अठखेलियां करना
आगामी आपदाओं की
परवाह न करते हुए
तटस्थ भाव से बढ़ते जाना
‘एकला चलो रे’
मेरे जीवन का मूल-मंत्र
आत्मविश्वास मेरी धरोहर
सृष्टि-नियंता में आस्था
मेरे जीवन का सबब
उसी का आश्रय लिए
उसी का हाथ थामे
निरंतर आगे बढ़ी हूँ
© डा. मुक्ता
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com