श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की चौथी कड़ी में उनकी एक सार्थक व्यंग्य कविता “ये दुनिया अगर…”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #4 ☆
☆ व्यंग्य कविता – ये दुनिया अगर… ☆
इन दिनों दुनिया,
हम पर हावी हो रही है।
आज की आपाधापी में,
चालक समय भाग रहा है।
समय को कैद करने की,
साजिश चल तो रही है।
लोग बेवजह समय से,
डर के कतरा से रहे हैं।
लोग समय बचाने,
अपने समय से खेल रहे हैं।
बेहद आत्मीय क्षणों में,
समय की रफ्तार देख रहे हैं।
अब पेड़ से बातें करने को,
हम टाइमवेस्ट कहने लगे हैं ।
और फूल की चाह को,
निर्जीव प्लास्टिक में देखते हैं।
अपनी इच्छा अपनापन,
समय के बाजार में बेच रहे हैं।
क्योंकि इन दिनों दुनिया,
समय के बाजार में खड़ी है।
© जय प्रकाश पाण्डेय