डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक कालजयी रचना समय के साथ…….। डॉ सुरेश कुशवाहा जी का यह गीत दो वर्ष पूर्व लिखा गया था किन्तु , उसकी सामयिकता का अनुमान आप स्वयं पढ़ कर ही लगा सकते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 46 ☆
☆ समय के साथ……. ☆
परिवर्तन की पीड़ाओं को,
आत्मसात यदि नहीं किया तो
नवागमित खुशियों से हम, वंचित रह जाएंगे।
खंडित होते संस्कारों में
मन रखने के व्यवहारों में
कितनी सांसें ले पाएंगे
केवल नकली उपचारों में।
इन स्वच्छंद हवाओं से
सौहार्द, समन्वय नहीं किया तो
निरंकुशी मौसम के वार, न फिर सह पाएंगे…..।
सरिता के प्रतिमुख प्रवाह में
तेज हवा के इस बहाव में
कितने पग हम चल पाएंगे
जीवन की इस जीर्ण नाव में,
अवरोधों को हृदयंगम कर,
साथ समय का नहीं दिया तो
पार पहुंचने को अब, उतना तैर न पाएंगे…..।
संशय रहित सुखद सपना हो
चिंतित मन जब भी अपना हो
सम्यक चिंतन दूर करे भ्रम
विश्वासों की संरचना हो,
यदि उद्विग्न, उदास-श्वांस
समिधा से हमने हवन किया तो
वातायन को फिर कैसे, पावन कर पाएंगे…..।
लक्ष्य स्वयं ही तय करना है
दीप कई पथ में धरना है
नेह नीर सूखने नहीं दें
जीवन यह अक्षय झरना है,
यदि बीजों को नहीं सहेजा,
प्रकृति का प्रतिकार किया तो
पाया जो जग से फिर क्या, वापस कर पाएंगे…..।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 989326601