श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय समसामयिक रचना “दो गज दूरी।  इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 17 ☆

☆ दो गज दूरी

एक तो रिश्तों में वैसे ही दूरियाँ बढ़ रहीं थीं  दूसरा ये भी ऐलान कर दिया कि दो गज दूरी बहुत जरूरी ।  आजकल सभी विशेषकर युवा पर्सनल स्पेस को ज्यादा महत्व देते हैं इसलिए  ऑन लाइन रिश्तों का चलन बढ़ गया है । इसकी सबसे बड़ी खूबी ;  इसमें नखरे कम झेलने पड़ते हैं । जब तक मन मिले तब तक फ्रेंड बनाओ अन्यथा अनफ्रेंड करो । ऐसा फ्रेंड किस काम का जो आपकी पोस्ट को बिना पढ़े लाइक न करता हो ।

दोस्ती होती ही तभी है;  जब आप एक दूसरे को लाइक करते हो । कहते हैं  न, सूरज अपने साथ  एक नया दिन लेकर आता है , तो ऐसे ही एक दिन सुबह – सुबह सात समंदर  पार से  कोरोना जी  भी आ धमके । जब कोई आता है तो पूरे घर की दिनचर्या बदल जाती है ; खासकर मध्यमवर्गीय परिवार की क्योंकि वे लोग दिखावे की दौड़ में खुद को शामिल कर लेते हैं । ऐसे समय में हम लोग अच्छा – अच्छा बना कर खाते और खिलाते हैं । ऐसा ही कुछ इस समय भी हो रहा है । दिन भर रामायण व महाभारत के पात्रों की चर्चा व चिंतन अधिकांश मध्यमवर्गीय परिवारों की जीवन शैली में शामिल हो कर महक- चहक रहा है । अपनी संस्कृति से  जुड़े होने की घोषणा हम तभी करते हैं जब मेहमान घर पर हो, तो बस ये अवसर आया विदेशी मेहमान हमारे साथ – साथ रहने की इच्छा लिए आ धमका और हम देखते ही रह गए ;  क्या करते । इसकी नियत पर शक तो शुरू से ही था ,  जो दिनों दिन पुख्ता भी होता जा रहा है  पर हम तो अतिथि देवो भव की परंपरा के पोषक हैं तो स्वागत सत्कार कर रहे हैं ।

इक्कीसवीं सदी चल रही है,  हर युग की अपनी कोई न कोई विशेष उपलब्धि रही है । जब इतिहास लिखा जायेगा तो कलियुग की सबसे बड़ी उपलब्धि  तकनीकी को ही माना जायेगा । इसकी  सहायता से सब कार्य ऑन लाइन होने लगे हैं  ।  लाइन लगाने में तो वैसे भी हम लोग बड़े उस्ताद हैं ; इसका अभ्यास नोटबन्दी के दौरान खूब किया है । अब ये भी सही है कि हर पल कुछ न कुछ नया करते रहना चाहिए । सो हर कार्य शुरू हो गए नए बदलावों के साथ ।  लॉक डाउन में अर्थव्यवस्था भले ही डाउन हुई हो पर घरेलू हिंसा अप ग्रेड हो रही है । अरे भई  जहाँ  चार बर्तन होंगे तो आवाज तो उठेगी ही । मामला भी ऑन लाइन ही सुलझाया जा रहा है ।   बड़ा आंनद आयेगा जब  वीडियो अदालत होगी,  ऐसे में बहसबाजी का दौर तब तक चलेगा जब तक सर्वर डाउन न हो जाये । कुछ भी कहें इक्कीसवीं सदी की बीमारी भी दो हाथ आगे निकली । चमगादड़ से आयी या प्रयोग शाला से ये तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं किंतु कहाँ- कहाँ मानवता के दुश्मन पनप रहे हैं इतना जरूर बताती जा रही है । कोई इसे कोरोना मैडम कहता है तो कोई कोरोना सर जी कह कर इसको सम्मानित कर रहा है । अरे भाई हम लोग सनातन धर्म को मानते हैं जहाँ हर प्राणी में ईश्वर का वास  देखा जाता है ।  सो सम्मान तो बनता है । अब ये बात अलग है कि ये वायरस है जिसे ज्यादा प्यार पाकर बहक जाने की आदत है । सबको जल्दी ही पोजटिव करता है । और द्विगुणित होकर बढ़ते हुए चलना इसका स्वभाव है । अब इसे कौन बताए कि हम लोग हम दो हमारे दो से भी दूर होकर हम दो हमारे एक पर विश्वास करते हैं । तुम्हारी दाल यहाँ नहीं गलने वाली । हमारे यहाँ तो जैसा अन्न वैसा मन ही सिखाया गया है अतः हम लोग चमगादड़ों से नाता नहीं जोड़ते । कुछ लोग भटके हुए प्राणी अवश्य हैं ; जो  भोजन और भजन को छोड़कर माँसाहार की ओर भटकते हैं ; वे भले ही तुम्हारी सेवा करें पर जैसे ही समझेंगे कि तुम्हारी सोच सही नहीं है । तुमसे खराब वाइव्स आ रही है तुम्हें रफा दफा कर देंगे ।

जब दिमाग ठंडा हो तो लोग आराम से कार्य करते हैं वैसे ही कारोना जी को भी ठंडेपन से ज्यादा ही मोह है ये साँस की नली की गली को ही ब्लॉक कर देता है । ब्लॉक करना तो इसकी  पुरानी आदत है । गर्मी पाते ही रूठ जाता है । सारे देशभक्त इसे भागने हेतु दिन -रात एक कर रहे हैं पर ये भी पूरी शिद्दत से गद्दारों को ढूंढ कर उनको उकसाता है ; कहता है मेरा साथ दो खुद भी जन्नत नशी बनों औरों को भी बनाओ । अनपढ़ लोग इसकी बातों में आ रहे हैं ; तो कुछ दूर से ही  इसके समर्थन में अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रहे हैं ।

जिस दिन से इंटरनेट शुरू हुआ ऑन लाइन सम्बंधो पर तो सभी ने वर्क शुरू किया । इस दौरान बहुत से फेसबुकिया रिश्तेदार भी बने ।  सारे  कार्य इसी से शुरू हो गए,  ऐसा लगने लगा मानो हम सब अंतरिक्ष में जाकर ही दम लेंगे पर ये अतिथि है कि जाने का नाम ही नहीं ले रहा । ये जाए तो हम सब की जीवनरूपी रेल पुनः पटरी पर दौड़ें ।

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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