सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “ गुलमोहर ”। इसी 1 मई को महाराष्ट्र के सतारा में विधिवत गुलमोहर जन्म दिवस मनाया गया है । सुश्री सुजाता जी के आगामी साप्ताहिक स्तम्भों में नीलमोहर एवं अमलतास पर अतिसुन्दर रचनाएँ साझा करेंगे। )
लाल साफा बाँधा है,
या पूर्व दिशा ही पहनी है!
सूरज की अटारी
पर रहते हो,
या सूरज ही
तुम पर बसता है।
डाल डाल की लालिमा
पात पात को
छुपाती है।
गुलमोहर तू यह तो
बता सिन्दूरी बन
क्यों बसते हो।
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684