श्री जय प्रकाश पाण्डेय

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में  मातृ दिवस के अवसर पर आपकी विशेष रचना माँ बेचारी । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।) 

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 46

☆ मातृ दिवस विशेष – माँ बेचारी  ☆ 

 

माँ हर बार

ऐसा ही करती है

 

ऐसा ही सोचती है

मा़यका मन में हैं

किवाड़ की सांकल

वो अमरूद का पेड़

वो अमऊआ की डाली

वो प्यारी प्यारी सहेली

वो अम्मा की लम्बी टेर

बाबू के किताबों के ढ़ेर

पगडंडी की वो पनिहारिन

चुहुलबाज़ी वाली वो नाईन

मुंडेर पर बैठी हुई  गौरैया

हर बार माँ याद करती है

बड़बड़ाती हुई सो जाती है

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments