डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक समसामयिक रचना फुर्सत में हो तो आओ ….। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 48 ☆
☆ फुर्सत में हो तो आओ …. ☆
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुक बंदियां करें
लाज शर्म संकोच छोड़ कर
हम भी शब्द चरें।
ऑनलैन के खेल चले हैं
इधर-उधर ई मेल चले हैं
कोरोना कलिकाल महात्मय
पानी में पूड़ीयां तले हैं,
शब्दों की धींगा मस्ती में
अर्थ हुए बहरे।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
कविता दोहे गद्य कहानी
सभी कर रहे हैं मनमानी
कोरोना के विषम काल में
कलम चले पी पीकर पानी,
अध्ययन चिंतन और मनन पर
लगे हुए पहरे।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
पहले तो, दो चार बार ही
महीने में होता सिर भारी
अब मोबाइल रखा हाथ में
चौबीस घंटे की लाचारी,
मुश्किल है अब वापस जाना
उतर गए गहरे।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
अलय बेसुरे गीत पढ़ें
सम्मानों से प्रीत बढे
जोड़ तोड़ ले देकर के
प्रगति के सोपान चढ़े,
अखबारी बुद्धि, चिंतक बन
बगुला ध्यान धरें।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
वाह-वाह की, दाद मिली
सांच-झूठ की खाद मिली
कविताएं चल पड़ी सफर में
खिली ह्रदय की कली-कली,
आत्ममुग्धता का भ्रम मन से
टारे नहीं टरे।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
अच्छा है ये मन बहलाना
और न कोई ठौर ठिकाना
कोरोना के, इस संकट से
बचने का भी, एक बहाना,
प्रीत के पनघट ताल तलैया
भरी रहे नहरें।
फुर्सत में हो तो आओ
अब तुकबंदियाँ करें।
सुरेश तन्मय
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 989326601