श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “परीक्षा”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 49 ☆
☆ लघुकथा – परम्परा☆
“रीना तूने ये क्या किया ? तेरी शादी मैं राकेश से धूमधाम से करने वाला था. फिर कोर्ट मैरिज करने की क्या जरुरत थी ?”
“पिताजी ! मैंने आप की बात सुन ली थी. आप मम्मी से कह रहे थे. मेरे पास इतने ही रूपए है कि मैं या तो रीना की शादी कर सकूं, या अपनी किडनी का इलाज करवा कर जिदा रह सकूं. फिर तुम तो जानती है की हरेक व्यक्ति को कभी न कभी मरना है. कोई जल्दी मरेगा तो कोई देर से.”
“क्या कह रही हो बेटी ?”
“सही कह रही हूँ पापा . तभी आप ने ही निर्णय किया था की आप मेरी शादी धूमधाम से करेगे, इलाज तो होता रहेगा. तभी मैंने आप की बातें सुन कर निर्णय कर लिया था कि मैं आप का इलाज करवा कर रहूंगी. इसलिए मैंने ..” वह आगे कुछ बोल नहीं पाई और पिताजी के चरण स्पर्श करने के लिए उनके कदमों में झुक गई .