श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय एवं प्रेरणास्पद रचना “जोड़-तोड़”। इस आलेख के माध्यम से श्रीमती छाया सक्सेना जी का कथन जीवन जल की तरह अनमोल है कदाचित सत्य है और वास्तव में इसे सहेज कर रखना ही चाहिए। इस सार्थक एवं विचारणीय रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 19 ☆
☆ जोड़-तोड़ ☆
बड़े धूमधाम से मिलन समारोह का आयोजन हुआ, लोग मुस्कुराते हुए फूले नहीं समा रहे थे; पर इस सब में भी कुछ चेहरे ऐसे थे जो जोड़ – तोड़ करने में लगे हुए थे । क्या केवल जोड़ से ही जीवन अच्छा बन सकता है ???
कभी नहीं, जोड़ बिना तोड़ के अधूरा है ; ठीक उसी प्रकार जैसे फूल बिना काँटे के, रेगिस्तान बिना मृगमरीचिका के, पनघट बिना पनिहारिन के, भगवान बिना भक्त के , आकाश बिना तारे के और धरती बिना हरियाली के कुछ अधूरी- अधूरी सी लगती है ।
खैर जब कुटिलता पीछे पड़ जाए तो यथार्थ पर आना ही पड़ता है, सो मिठाई की टेबल छोड़कर लोग चल दिये पानी पूरी व चाट के स्टाल की ओर, मैं तो अवलोकन करते हुए न जाने कितनी कॉफी पी गयी, फिर ध्यान आया अरे टेस्ट तो करूँ, सो एक बड़ी सी प्लेट में ढेर सारा अंकुरित अनाज भर कर, चल दी तबा फ्राय से भरवां करेला लेने, मेरा एक उसूल है; मीठा हो लेकिन कड़वे के साथ, अब बारी थी मिठाई के तरफ बढ़ने की सो वहाँ पहुँची और जम कर चमचम व खोये की जलेबी का आनन्द लिया क्योंकि मुझे मालुम है उत्सव के बाद कुछ कड़वाहट तो फैलेगी ही सो तैयार रहो ।
सबसे जरूरी बात कि मीठा रोग होता है जबकि कड़वा भोग होता है जिसने कटुता को जी कर राह बनायी उसका बाल बाँका कोई नहीं कर पाया वो शिखर पर स्थापित हो पूज्य हुआ अतः जीवन में मीठे और कड़वे दोनों अनुभवों को सहेजें क्योंकि ये जीवन अनमोल है जल की तरह, इसे बचाएँ , हरियाली की तरह फ़ैलाएँ झूमें और गायें खुशियाँ मनाएँ क्योंकि बीता समय लौट कर नहीं आता । अवसर का उपयोग करें पर अवसरवादी बनना है या नहीं ये आप पर निर्भर करता है ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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