श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री संतोष नेमा जी का एक भावप्रवण रचना “भाषा आँखों की अलग …. ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 38 ☆
☆ भाषा आँखों की अलग .... ☆
आँखों से आँखें करें, आपस में तक़रीर
देखो मूरख लिख रहे,आँखों की तक़दीर
आँखें ही तो खोलतीं,दिल के गहरे राज़
प्यार मुहब्बत इश्क़ का,करती हैं आगाज़
आँखों से ही उतरकर,दिल में बसता प्यार
दिल से उतरा आँख से,बरसाता जल धार
प्यासी आँखें खोजतीं,सदा नेह जल धार
जिन आँखों में जल नहीं,वो निष्ठुर बेकार
गहराई जब आँख की,देखे कोई और
आँखों में ही डूबता,रहे न कोई ठौर
आँखें ही तो पकड़तीं,सबकी झूठ जबान
दिल-जबान के भेद की,करतीं वे पहचान
भाषा आँखों की अलग,इनकी अलग जबान
आँख मिलाते समय अब,सजग रहें श्रीमान
आँखों को भाता सदा,कुदरत का नव रंग
सुंदरता मन मोहती,आँखों भरी उमंग
आँखों में सपने बसें,बसती हैं तसवीर
आँखों से ही झलकती, इन नैनों की पीर
आँखों से ही हो सदा,खुशियों की बरसात
भीगी आँखें रात-दिन,छलकातीं जज्बात
आँखें जग रोशन करें,आँखें रोशन दान
आँखों में संतोष है,सूरज ज्योतिर्मान।।
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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