डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तंत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। आज से आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक सकारात्मक आलेख ‘ये समय है सकारात्मक सोच के क्रियान्वयन का’।)
☆ किसलय की कलम से # 1 ☆
☆ ये समय है सकारात्मक सोच के क्रियान्वयन का ☆
ईश्वर साक्षी है, जिसने समय से सबक नहीं लिया वह सदा ही मुसीबत में पड़ा है। समय सबको एक बार पूर्वाभास अवश्य कराता है, लेकिन अपने में मशगूल आज के इंसान को अच्छे या बुरे वक्त की आहट या दस्तक सुनाई ही नहीं पड़ती। समय जब बुरे वक्त की दस्तक देता है तब हम दुनियादारी के शोर में कुछ सुन नहीं पाते, चिंतन-मनन की बात तो बहुत दूर की है। इसी तरह जब अच्छे वक्त की आहट होती है तब भी हम सुनना नहीं चाहते। उन अच्छे दिनों को ईशकृपा मानने के बजाय स्वयं की उपलब्धि मान बैठते हैं, जबकि यह अच्छा वक्त केवल आपके कर्मों का फल नहीं होता। इसमें हमारे परिवार, हमारे समाज एवं हमारी प्रकृति की भी भागीदारी होती है। यदि इंसान इस सत्सूत्र को जान ले तो वह सभी प्राणियों व प्रकृति से मित्रवत व्यवहार करने लगेगा, इस प्रकार ‘जियो और जीने दो’ वाक्य के चरितार्थ होने देर नहीं लगेगी।
हमने देखा है कि किसी कार्य के प्रारंभ होने से पूर्व ही उस कार्य की परिणति के विचार मानस पटल पर उभरने लगते हैं। ज्ञानवान तो इन विचारों की बारीकियों को पकड़ लेते हैं लेकिन आम आदमी का पूरा ध्यान सफलता के आभासी उत्स में ही डूबा रहता है। वह कमियों को सिरे से नकारता रहता है। यही भ्रम उस कार्य के परिणाम पर भी प्रभाव डालता है।
पेड़-पौधों व जंगलों के घटते क्षेत्रफल से उत्पन्न पानी का अभाव, गर्मी का प्रकोप, शुद्ध वायु की कमी, वन्यजीवों की घटती संख्या एवं पृथ्वी के हठात दोहन से आज प्राकृतिक असंतुलन की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। अब तो आदमी परेशानी महसूस करने लगा है। बुरे वक्त की दस्तकों व चेतावनी सुनकर हमने कोई संतोषजनक कदम नहीं उठाए। बढ़ते कांक्रीट जंगलों, असंयत खानपान की वजह से बीमारियाँ तथा स्वास्थ्यगत कमजोरियाँ बढ़ती जा रही हैं, बावजूद इन सबके इन दस्तकों से किसी ने जीवन शैली में सुधार करने की कोशिश नहीं की।
आज से पचास-साठ वर्ष पूर्व की ही बात करें तो क्या इतनी भयानक और आधिक्य में बीमारियाँ होती थीं। आज तो हम न बीमारियों के नाम और न ही डॉक्टरों के प्रकार गिन पाते। और तो और उस समय के इंसान ने आज पाई जाने वाली बीमारियों की कल्पना तक नहीं की होगी कि ऐसी भी कोई बीमारियाँ हो सकती हैं, जो चमगादड़, सूअर, घोड़े, कुत्ते, बिल्ली या साँप-बिच्छू के खाने से भी होंगी। सोचते भी कैसे, क्योंकि हमने कभी सुना भी नहीं था कि लोग इन जीव-जंतुओं को कच्चा भी खाते होंगे। हमारे देश में तो ‘अहिंसा परमोधर्मः’ पर चलने वाले लोग वनस्पतियों तक को अनावश्यक क्षति पहुँचाने को हिंसा मानते थे, लेकिन आज ये सब अतीत की बातें हो गई हैं।
वक्त ने दस्तक दी हिंसा बुरी बात है, पर क्या सांप्रदायिक दंगे और आतंकवाद कम हुए? वक्त ने दस्तक दी-प्रेम भाईचारे की, क्या ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के भाव जगे। इसके विपरीत विश्व के विभिन्न देश आज लड़ाई-झगड़े और अपने वर्चस्व की खातिर इंसानियत की हद भी पार करने से नहीं चूक रहे। आज परमाणु युद्ध और स्पेसवार के आगे भी व्यापार युद्ध,पानीयुद्ध और सबसे बड़े युद्ध ‘वायरस वार’ की दस्तक और सुगबुगाहट हम सुन पा रहे है। क्या यह इंसान के लिए अत्यंत संवेदनशील एवं विचारणीय समय नहीं है? आज राष्ट्रीय सीमाओं और हीन विचारों से ऊपर उठकर प्राकृतिक संतुलन को पुनः स्थापित करने का वक्त है। आज कोविड-19 नामक विश्वव्यापी महामारी के चलते जब सारी दुनिया थम सी गई है। आज जैसे हर घर में एक अजीब सा मौन पसरा हुआ है। लोगों की मनःस्थिति का पता लगाना मुश्किल हो गया है। ये ‘किंकर्त्तव्यविमूढ़’ जैसी स्थिति है, परंतु इन दिनों हमारे पास पर्याप्त समय है जब हम मानव जीवन की उपादेयता, शांतिपूर्ण सामाजिक वातावरण तथा प्रकृति से निकटता स्थापित करने विषयक कुछ सकारात्मक चिंतन-मनन कर सकते हैं। कहा भी गया है कि इंसान को दुख या मुश्किल के क्षणों में ही अच्छा-बुरा, सत्य-असत्य, लाभ-हानि कुछ ज्यादा ही दिखाई देने लगता है। विगत जीवन की अनेकानेक यादें स्मृत हो उठती हैं।
अतः ये समय है सकारात्मक सोच के क्रियान्वयन का। हम समय निकालकर अपने जीवन की उपादेयता व सामाजिक सद्भावना पर चिंतन-मनन करें और उस पर अमल करना आज से ही प्रारंभ करें। मुझे विश्वास है इससे हमारे मन निर्मल होंगे और मानव समाज निश्चित रूप से सकारात्मक दिशा में अग्रसर होगा।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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