डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘गुरू का प्रसाद ’। वास्तव में समय ही हमें जीवन जीना सीखा देता  है और वही हमें जीवन का अनुभव भी देता है। व्यक्ति पहले शोषित होता है फिर वही शोषण करने लगता है। ऐसे अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 51 ☆

☆ व्यंग्य – गुरू का प्रसाद ☆

रात आठ बजे घर पहुँचा तो पता चला गुरुदेव का बुलावा आया था। दिमाग में खटका हुआ, क्योंकि गुरुदेव बिना मतलब के याद नहीं करते।

दरबार में हाज़िर हुआ तो गुरुदेव ने मुस्कराकर ध्यान दिलाया, ‘याद रखना, तुम मेरे पुराने शिष्य हो। ‘

मैंने कहा, ‘चाहूँ तो भी नहीं भूल सकता, गुरुदेव। योग्य सेवा बताइए। ‘

वे हँसकर बोले, ‘सेवा भी बताएंगे। थोड़ी बातचीत तो करें। ‘

थोड़ी देर बाद कॉफी पेश हुई। मैंने कहा, ‘गुरुदेव, मैं रात में कॉफी नहीं पीता। नींद खराब हो जाती है। ‘

गुरुदेव कृत्रिम क्रोध से बोले, ‘चुप! गुरू के प्रसाद को इनकार करता है? पीनी पड़ेगी। ‘

एक कप ख़त्म होने पर गुरुदेव ने दूसरा भर दिया। बोले, ‘गुरू का चमत्कार देखना। बढ़िया नींद आएगी। ‘

एक घंटे बाद चलने को हुआ तो गुरुदेव ने एक पैकेट पकड़ा दिया। बोले, ‘इसमें बी.ए. की पचास कापियाँ हैं। आज रात में जाँच डालो। अर्जेन्ट काम है। तुम्हारे लिए थोड़ा सा ही रखा है। बाकी दूसरों को दिया है। ‘

मैं गुरुदेव की गुरुआई देखते देखते घाघ हो गया था। घर आकर पैकेट एक कोने में फेंका। कॉफी के असर से नींद नहीं आयी तो एक उपन्यास चाट गया।

दूसरे दिन जब दोपहर तक मैं नहीं पहुँचा तो गुरुदेव हाँफते हुए मेरे घर पर अवतरित हुए। बोले, ‘कापियाँ जँच गयीं?’

मैंने कहा, ‘क्षमा करें, गुरुदेव। रात को नींद आ गयी। सो गया। ‘

गुरुदेव ने माथे पर हाथ मारा। करुण स्वर में बोले, ‘दो कप कॉफी पीकर भी नींद आ गयी?’

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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Shyam Khaparde

शानदार व्यंग, मज़ा आ गया