श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  ऑनलाइन बहस पर आधारित  एक अतिसुन्दर सेल्फी पर आधारित व्यंग्य  “ऑनलाइन बहस का मौसम।   श्री विवेक जी  की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 51 ☆ 

☆ व्यंग्य – ऑनलाइन बहस का मौसम

 लाकडाउन ने और कुछ दिया हो या न दिया हो पर घड़ी की सुई के साथ, नम्बरो और भौतिकता के इर्द गिर्द रुपयों के लिये भागमभाग करती जिंदगी को मजबूरी में ही सही पर खुद से मिलने के मौके जरूर दिये हैं. खुली जेल की नजरबंदी के मजे लेने की सोच जिसके पास है, उसने सारी परेशानियों के साथ, बिना कामवाली बाई के भी, काम करते हुये मेरी तरह जिंदगी के मजे भी लिये हैं. लोग सुबह तब काम पर निकल जाते थे जब बच्चे सो रहे होते थे, और तब थके हारे लौटते थे जब बच्चे सो चुके होते थे, मतलब वे बच्चो को लेटे हुये ही बढ़ता देख रहे थे. ऐसे सभी लोगों को भी अपनी जमीन, अपना गांव याद आ गया. लाकडाउन से परिवार के साथ समय बिताने का, खुद से खुद को मिलने का मौका मिला.

इस कोरोना काल का साहित्यकारो ने भरपूर रचनात्मक उपयोग किया. सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा कर लोगो ने नये यूट्यूब चैनल्स बनाये, इंस्टाग्राम और फेसबुक एकाउन्ट बनाये. युवाओ ने टिकटाक बनाये.  जो पहले से फेसबुक पर थे उन्होनें फेसबुक की मित्र मण्डली की छटनी कर डाली. इतना सब तो पहले लाकडाउन तक ही कर डाला गया. पर कहा जाता है न कि मनुष्य का दिमाग ऐसा सुपर कम्प्यूटर है जिसकी पूरी क्षमता का दोहन ही हम कभी नही कर पाते. जब सरकार को कोरोना से बचने का और कोई उपाय नही सूझा तो लाकडाउन दो लागू कर दिया गया. बुद्धिजीवी लोगो की बुद्धि बिना गोष्ठियों के अखल बखल होने लगी. जब तक गर्मागरम बहस न हो, देश के लोगों का खाना अच्छी तरह नही पचता. यही कारण है कि शाम होते ही सारे खबरिया चैनल अपने पर्दे पर बे सिर पैर की बहसों के आयोजन करते हैं. कथित विशेषज्ञ बातो के लात जूतो से एक दूसरे की लानत मलानत पर उतर आते हैं. भले ही बहस का कोई परिणाम नही निकलता पर सारे देश को भरोसा हो जाता है कि हमारा लोकतंत्र जिंदा है और हमारी अभिव्यक्ति की संवैधानिक आजादी पूरी तरह बरकरार है.

जिन लोगों को किसी व्यस्तता के चलते टीवी पर यह बहस सुलभ नही हो पाती उनके लिये देश में चाय और पान के टपरे हैं. जहां लोकल दैनिक से लेकर साप्ताहिक अखबार और सांध्य समाचार के पन्ने उपलब्ध होते हैं. यहां अपनी अपनी रुचि के अनुरूप लोग पसंदीदा खबर पर किसी भी जाने अनजाने उपस्थित अन्य चाय पीते व्यक्ति से टाइमपास बहस शुरू कर सकता है. इस तरह बहस से सारे देश का हाजमा हमेशा दुरुस्त बना रहता है. बुद्धिजीवियो को ऐसी प्रायोजित बहसो में मजा नही आता, उन्हें अपना खाना पचाने के लिये मौलिक बहसों की जरूरत होती है. इस वजह से वे काफी हाउस में एकत्रित होकर मुद्दे तलाशते हुये फिल्टर काफी पीते हैं. लगे हाथ चुगली, चाटुकारिता आदि भी हो जाती है, और अकादमी पुरस्कारो की साठ गांठ भी चलती रहती है.

एक और वर्ग होता है जिसे खाना पचाऊ बहस के लिये रात का समय ही मिल पाता है, यह वर्ग चखना के साथ स्वादानुसार पैग तैयार कर मित्र मण्डली से बहस करता है और लोकतंत्र को अपना समर्थन देते हुये मदहोश सुखद स्वप्न संसार में खो जाता है.

लाकडाउन ने चाय पान की गुमटियां गुम कर रखी थी,काफी हाउस और बार बन्द थे, इसलिये स्वाभाविक रूप से बिना बहस लोग अखल बखल थे. लोगों का हाजमा खराब हो रहा था. ऐसे समय में काम आये मोबाईल के वे मीटिंग एप जिनके जरिये हम ग्रुप्स में जुड़ सकते हैं, सामाजिक सांस्कृतिक साहित्यिक संस्थाओ ने प्लेटफार्म दिये, ग्रुप एडमिन्स ने आनलाईन बहस के मुद्दे ढ़ूंढ़ लिये और लोग नियत समय पर आनलाईन कविता पाठ, व्यंग्यपाठ, देश की एकता, लाकडाउन हो या न हो, यदि मोदी की जगह कोरोना काल में राहुल प्रधानमंत्री होते तो, जैसे अनेकानेक विषयो पर आनलाईन बहस में जुटे हुये हैं. सबका हाजमा ठीक हो रहा है.अपनी बस यही गुजारिश है कि सरकार खाने के लिये आटा और उसे पचाने के लिये आनलाईन डाटा देती रहे, फिर कोई चिंता नही है, लाकडाउन तीन, चार, पांच चलता रहे जनता धीरे धीरे कोरोना के साथ जीना सीख ही लेगी.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments