डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना फिर नदी निर्मल बहेगी……। )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 49 ☆

☆ फिर नदी निर्मल बहेगी…… ☆  

 

बाढ़ है ये

फिर नदी निर्मल बहेगी

बोझ आखिर क्यों

कहाँ तक ये सहेगी।

 

सिर उठाते ठूंठ,

हलचल है शवों में

अट्टहासी गूंज

प्रकुपित कलरवों में

मुंह छिपाए तट

विलोपित हो गए हैं

त्रस्त है मौसम

विषम इन अनुभवों में,

 

है उजागर

उम्र यूँ ढलती रहेगी।

बाढ़ है ये

फिर नदी निर्मल बहेगी।।

 

जीव जलचर

जो निराश्रित हो रहे हैं

घर, ठिकाने

स्वयं के सब खो रहे हैं

विकल बेसुध,

भोगते कलिमल किसी का

कौन सी भावी फसल

हम बो रहे है,

 

ये असीम करूण कथा

सदियां कहेगी।।

बाढ़ है ये

फिर नदी निर्मल बहेगी।।

 

क्या पता,

संग्रहित कब से जो पड़ा था

राह रोके

सलिल-लहरों के अड़ा था

वह कलुष कल्मष

समेटे बढ़ रही है

संग बरखा के,

इरादा सिर चढ़ा था,

 

लक्ष्य को पाने

सतत चलती रहेगी।

बाढ़ है ये

फिर नदी निर्मल बहेगी।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

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Shyam Khaparde

सुंदर रचना