श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “काँच की दीवार ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 50 ☆
☆ लघुकथा – काँच की दीवार ☆
“लड़कियों को छूट देना, मन चाही जगह जाने देना, ज्यादा रोका टोकी नहीं करना, अच्छे कालेज में पढ़ाना, मनचाहा मोबाइल देना – इन्ही सब वजह से लड़कियां बिगड़ जाती है. मैंने तुझे कहा था की मोना को ज्यादा लाड़ प्यार मत कर. बिगड़ जाएगी. यह उसी का नतीजा है कि तेरी लड़की ने भाग कर दूसरी जाति के लड़के से शादी कर ली. एक मेरी लड़की टीना को देख….,” मोहन अपने छोटे भाई के जले पर नमक छिटक रहे थे.
तभी मोहन जी के लडके ने आ कर कहा, “पापाजी ! मामाजी का फोन है. कह रहे है कि टीना ने ही मोना की शादी का बंदोबस्त किया था.”
मोहन जी को लगा कि अभी-अभी वे जिन शब्दों से अपने स्वाभिमान रूपी कांच की दीवार खड़ी कर रहे थे उसे उन की लड़की मोना के व्यवहार रूपी पत्थर से चकनाचूर हो गई.