डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं प्रदत्त शब्दों पर “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 49 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
होता है आलोक जब,
खिलता पुष्पित पुंज।
कलियों का कलरव बढ़ा,
गूंज उठा है कुंज।
करते है हम आचमन,
गंग जमुन का नीर।
ईश अर्चना पूर्ण हो
मन से हटती पीर।
आज लोग डरते नहीं,
करने से ही पाप ।
अंतरात्मा दे रही,
उनको ही अभिशाप।।
मन की चाबी से भला,
कैसे खोले भेद।
सबके मन में दिख रहे
जाने कितने छेद।
चतुराई की चाल से,
उनसे किया सवाल।
आज आदमी डस रहा,
बनकर जैसे व्याल।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
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