श्री शांतिलाल जैन
☆ मॉम है कि मानती नहीं ☆
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य “इंस्टेंट जस्टिस जिनकी यूएसपी है”। इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल #6 ☆
☆ इंस्टेंट जस्टिस जिनकी यूएसपी है ☆
जनकसिंग पहलवान अभी-अभी देश बचाने की एक स्वस्फूर्त, स्वप्रेरित कार्यवाही संपन्न करके आ रहे हैं. सीना इस कदर फूल गया है कि शर्ट के दो बटन तो फूलन-फूलन में ही टूट गये हैं. कुछ और फूली सांसे अभी बाहर आयेंगी और नई-नकोर बनियान को भी चीर जायेंगी. गैस, गालियाँ, भभकों और लार से बना गरम लावा मुंह से अविरल बह रहा है.
उधर जख्मी को वन-जीरो-एट से अस्पताल भेजा गया है और इधर फूलती साँसों की बीच वे जितना बोल पा रहे हैं उतने में ही सबको बता रहे हैं कि कैसे उन्होंने देश के एक दुश्मन को सजा दे डाली है. साईकिल के टायर के दो फीट के टुकड़े से उन्होंने एक युवक को इतने सटाके लगाये कि इंसान था, झेब्रा दिखने लगा. वो तो लोगों ने कस कर पकड़ लिया वरना वे उसका वही हश्र करते जो कबीलों में मुल्जिम का, बरास्ते कोड़ों के, सजा-ए-मौत सुनाये जाने पर होता है.
उनकी अपनी एक अदालत है, अपना ही विधान. इसके मुंशी मोहर्रिर, वकील, पेशकार, जज, अपीलीय कोर्ट, जस्टिस, चीफ जस्टिस तक वे खुद ही खुद हैं. विधि में सनात्कोत्तर डिग्री उन्होंने वाट्सअप विश्वविद्यालय से हांसिल की है. जूरिस्प्रुडेंस के उनके अपने सिद्धांत हैं. न्याय की उनकी देवी के हाथ की तराजू में सब धान बाईस पसेरी तुलता है. उसने आँखों पर पट्टी तो नहीं बाँध रखी है मगर एक खास नज़रिये का चश्मा जरूर चढ़ाया हुआ है. वे फैसला ही नहीं देते, पेनल्टी एक्सीक्यूट भी करते हैं. इंस्टेंट जस्टिस उनकी यूएसपी है. उनका न्याय न इंतज़ार करता है, न कराता है. ज्यादातर मुकदमे वे सुओ-मोटो हाथ में लेते हैं और देश बचाने का केस हो तो टॉप प्रायोरिटी पर निपटाते हैं. ऐसा हर केस निपटाने के बाद उनको लगता है कि उन्होंने मातृभूमि के ऋण की एक ईएमआई चुका दी है. अभी काफी कुछ क़र्ज़ चुकाना बाकी है. शौर्य चक्रों से खुद को नवाजने की परंपरा भारत में रही होती तो उनके सीने पर कर्नल गद्दाफ़ी की वर्दी पर लगे मैडलों से दुगुने मैडल लगे होते. बहरहाल, आग उगलते मुंह से उन्होंने कहा – ‘……. चीनी चपटा, हमारे देश में कोरोना भेजता है. वो सटाके लगाये कि अब जिन्दगी में इधर पैर नहीं रखेगा.’ शर्ट का एक बटन और टूट गया है.
मैंने कहा – ‘पेलवान, वो लड़का तो मेघालय से यहाँ पढ़ने आया था. सामनेवाली मल्टी के पीछे एक कमरे में किरायेदार है. संगमा जेम्स जैसा कुछ नाम है उसका.’
उन्होंने मुझे घूरकर देखा. मैं बुरी तरह डर गया. अभी लावा ठंडा पड़ा नहीं है. जो उनने अपन को ही चीन का जासूस समझकर सूत-सात दिया तो…!! बोले – ‘मैंने ये बाल धूप में सफ़ेद नी करे हेंगे, आपसे ज्यादा दुनिया देखी हेगी. कौनसा लै बताया आपने ?’
‘मेघालय’
‘हाँ वोई. ये सारे लै, है, वै, हू, तू, थू चीन में ही पड़ते हैं. चपटे सब वहीं से आते हैं.’
‘पेलवान, वो भारत की ही एक स्टेट है. सेवन सिस्टर्स नहीं सुना आपने ?’
‘सिस्टर हो या ब्रदर – देश सबके ऊपर है.’ फिर बोले – ‘वाट्सअप पे आये चीनियों से सिकल मिला लेना उसकी, नी मिलती होय तो नाम बदल देना जनकसिंग पेलवान का. ….ईलाज करना जरूरी था. देश बचाना है तो इन चपटों की तो…..’.
‘मैं आपको नक्शा दिखाता हूँ ना.’
‘नक़्शे तो इनके मैं बिगाडूँगा. नक्शेबाजी करना भुला दूंगा एक एक की. और कालोनीवालों, सब कान खोलकर सुन लो रे, एक भी चीनी चपटे को अन्दर घुसने मत देना. टायर के हंटर रखो घर में.’ अपनावाला मुझे थमाते हुवे बोले – ‘कोई चीनी चपटा दिखे तो उसको वईं के वईं सलटा देना. आपसे नी बने तो मेरे कने लिआना.’
वे चले गये, मैं देख पा रहा हूँ – ज़ख्मी विधि, विधायिका, न्याय, न्यायपालिका, संगमा जेम्स और वी द पीपुल ऑफ़ इंडिया…….
© शांतिलाल जैन
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