श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर व्यंग्य   “लल्लन टाप होने की रिस्क।  श्री विवेक जी ने  शिक्षा के क्षेत्र में सदैव प्रथम आने की कवायद और अभिभावकों की मानसिकता पर तीखा व्यंग्य  किया है । साथ ही गलत तरीकों से ऊंचाइयों पर पहुँचाने का हश्र भी।  श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर  व्यंग्य के  लिए नमन । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 54 ☆ 

☆ व्यंग्य – लल्लन टाप होने की रिस्क ☆

“अगर आप समाज का विकास करना चाहते हैं तो आप आईएएस बनकर ही  कर सकते हैं “, यहां समाज का भावार्थ खुद के व अपने  परिवार से होता है, यह बात मुझे अपने सुदीर्घ अनुभव से बहुत लम्बे समय में ज्ञात हो पाई है. यदि हर माता पिता, हर बच्चे का सपना सच हो सकता तो भारत की आधी आबादी आई ए एस ही होती,  कोई भी न मजदूर होता न किसान, न कुछ और बाकी के जो आई ए एस न होते वे सब इंजीनियर, डाक्टर, अफसर ही होते. धैर्य, कड़ी मेहनत, अनुशासन और हिम्मत न हारना, उम्मीद न छोड़ना, परीक्षा की टेंशन से बचना और खुद पर भरोसा रखना, नम्बर के लिये नहीं ज्ञानार्जन के लिये रोज 10 या 20 घंटे पढ़ना जैसे गुण टापर बनाने के सैद्धांतिक तरीके हैं. प्रैक्टिकल तरीको में नकल, पेपर आउट करवा पाने के मुन्नाभाई एमबीबीएस वाले फार्मूले भी अब सेकन्ड जनरेशन के पुराने कम्प्यूटर जैसे पुराने हो चले  हैं.पढ़ाई के साथ साथ  तन, मन, धन से गुरु सेवा भी आपको टापर बनाने में मदद कर सकता है, कहा भी है जो करे सेवा वो पाये मेवा.

एक बार एक अंधा व्यक्ति सड़क किनारे खड़ा था. वह राह देख रहा था कि कोई आने जाने वाला उसे सड़क पार करवा दे. इतने में एक व्यक्ति ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा कि कृपया मुझे सड़क पार करवा दें मैं अंधा हूँ. पहले अंधे ने दूसरे को सहारा दिया और चल निकला, दोनो ने सड़क पार कर ली. यह सत्य घटना जार्ज पियानिस्ट के साथ घटी थी. शायद सचमुच भगवान  उन्ही की मदद करता है जो खुद अपनी मदद करने को तैयार होते हैं. मतलब अपने लक को भी कुछ करने का अवसर दें, निगेटिव मार्किंग के बावजूद  सारे सवाल अटैम्प्ट कीजीए  जवाब सही निकले तो बल्ले बल्ले.

टापर बनाने के लेटेस्ट  फार्मूले की खोज बिहार में हुई है. कुछ स्कूल अपनी दूकान चलाने के लिये तो कुछ कोचिंग संस्थान अपनी साख बनाने के लिये शर्तिया टाप करवाने की फीस लेते हैं. उनके लल्लन छात्र  भी टाप कर जाते हैं.  नितांत नये आविष्कार हैं. कापी बदलना, टैब्यूलेशन शीट बदलवाना, टाप करने के ठेके के कुछ हिस्से हैं  कुछ नये नुस्खे धीरे धीरे मीडीया को समझ आ रहे हैं. यही कारण है कि बिहार में टापर होने में आजकल बड़े रिस्क हैं जाने कब मीडीया फिर से परीक्षा लेने मुंह में माईक ठूंसने लगे. जिस तेजी से बिहार के टापर्स एक्सपोज हो रहे  है, अब गोपनीय रूप से टाप कराने के तरीको पर खोज का काम बिहार टापर इंडस्ट्री को शुरू करना पड़ेगा.कुछ ऐसी खोज करनी पड़ेगी की कोई टाप ही न करे, सब नेक्सट टु  टाप हों जिससे यदि मीडीया ट्रायल में कुछ न बने तो बहाना तो रहे. या फिर रिजल्ट निकलते ही टापर को गायब करने की व्यवस्था बनानी पड़ेगी, जिससे ये  इंटरव्यू वगैरह का बखेड़ा ही न हो.

एक पाकिस्तानी जनरल को हमेशा टाप पर रहने का जुनून था. वे कभी परेड में भी किसी को अपने से आगे बर्दाश्त नही कर पाते थे. एक बार वे परेड में लास्ट रो में तैनात किये गये, पर वे कहां मानने वाले थे, धक्का मुक्की करते हुये तेज चलते हुये  जैसे तैसे वे सबसे आगे पहुंच ही गये, पर जैसे ही वे फर्स्ट लाईन तक पहुंचे कमांडिंग अफसर ने एबाउट टर्न का काशन दे दिया. और वे बेचारे जैसे थे वाली पोजीशन में आ गये. कुछ यही हालत बिहार के टापर्स की होती दिख रही है.

बच्चे के पैदा होते ही उसे टापर बनाने के लिये हमारा समाज एक दौड़ में प्रतियोगी बना देता है.सबसे पहले तो स्वस्थ शिशु प्रतियोगिता में बच्चे के वजन को लेकर ही ट्राफी बंट जाती है, विजयी बच्चे की माँ फेसबुक पर अपने नौनिहाल की फोटो अपलोड करके निहाल हो जाती है. फिर कुछ बड़े होते ही बच्चे को यदि कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता में  चेयर न मिल पाये तो आयोजक पर चीटिंग तक का आरोप लगाने में माता पिता नही झिझकते. स्कूल में यदि बच्चे को एक नम्बर भी कम मिल जाता है तो टीचर की शामत ही आ जाती थी. इसीलिये स्कूलो को मार्किंग सिस्टम ही बदलना पड़ गया. अब नम्बर की जगह ग्रेड दिये जाते हैं. सभी फर्स्ट आ जाते हैं.

जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है, उसे इंजीनियर डाक्टर या आई ए एस बनाने की घुट्टी पिलाना हर भारतीय पैरेंट्स की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है. इसके लिये कोचिंग, ट्यूशन, टाप करने पर बच्चे को उसके मन पसंद मंहगे मोबाईल, बाईक वगैरह दिलाने के प्रलोभन देने में हर माँ बाप अपनी हैसियत के अनुसार चूकते नहीं हैं. वैसे सच तो यह है कि हर शख्स अपने आप में किसी न किसी विधा में टाप ही होता है, जरूरत है कि  हर किसी को अपनी वह क्वालिटी पहचानने का मौका दिया जाये जिसमें वह टापर हो.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments