सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “ खोज ”। यह कविता आपकी पुस्तक एक शमां हरदम जलती है से उद्धृत है। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 39 ☆
जाने क्या खोज रही है रूह
कि लेती जाती है जनम पर जनम?
क्या कोई तलब है
जो रूह को कलम की नोक सा चलाती है?
या कोई ख्वाहिश है
जो बार-बार उसे आने को मजबूर करती है?
या यह कोई समंदर सी प्यास है
जो पूरा होने को तड़पती है?
या यह कोई अधूरे चाँद का हिस्सा है
जो पुर-नूर होने की आरज़ू रखती है?
या फिर यह कोई तिस्लिम है
जिसमें बेबस हो यह फंसी हुई है?
रूह की आज़ादी तो
सारी जुस्तजू ख़त्म होने के बाद शुरू होती है-
तो फिर यह जाने कौनसी दास्ताँ है
जो किसी कसक को रोके रखती है?
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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कविता पढ़कर बहोत ही आच्छा लगा।
Bahut shukriya. Comments padhkar dil shaad ho jaata hai
सुंदर रचना