श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य “सजन रे झूठ ही बोलो””। इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 7 ☆
☆ सजन रे झूठ ही बोलो”☆
‘सजन रे झूठ मत बोलो…..वहाँ पैदल ही जाना है.’
अपन तो इससे असहमत हैं.
सजन झूठ क्यों नहीं बोले, बताईये भला ? सजन राजनीति में है. झूठ बोले बिना वहाँ उसका काम चल पाया है कभी. कुर्सी, पद, पोजीशन, पॉवर उसका एक मात्र ख़ुदा है और पैदल चलकर तो उस तक पहुँचा नहीं जा सकता ना. गीतकार ने बिना कुछ देखे ही लिख दिया – न हाथी है न घोड़ा है. श्रीमान ज़रा आकर देखिये तो, हाथी घोड़े अब उसकी रैलियों में निकलते हैं. पैदल तो वो तब था जब उसने राजनीति में अपना पहला कदम रखा था. उधार की बाईक पर झूठ का सहारा लेकर चढ़ा, फिर एम्बेसेडर, मारुती एट-हंड्रेड से बोलेरो और वातानुकूलित रेल से होता हुआ, चार्टर्ड प्लेन से वो तो अपने ख़ुदा तक कब का पहुँच चुका, और आप हैं कि गाना गाते ही रह गये. जो उसने 1966 में शैलेन्द्र के लिखे इस गीत पर भरोसा किया होता तो या तो गुलफाम की तरह मारा गया होता या अभी भी हीरामन की तरह कहीं बैलगाड़ी हांक रहा होता. इसीलिये वो गीतों, कविताओं, रचनाओं, बुद्धिजीवियों के झांसे में नहीं पड़ता. अलबत्ता, उन कलाकारों को जरूर साधकर रखता है जो उसके झूठ को भी सच बना कर गानों के एल्बम जारी कर सकें.
झूठ भी कितने मासूम!! रोजगार बढ़ायेगा. महंगाई कम करेगा. सबको बिजली, पानी, सड़क मिलेगी. सबके लिये सुलभ शिक्षा, स्वास्थ्य और लोक परिवहन. भ्रष्टाचार ढूंढे नहीं मिलेगा. मिनिमम गवर्नमेंट, मेक्सीमम गवर्नेंस की गारंटी. जितने मासूम झूठ हैं उससे ज्यादा मासूम उस पर भरोसा करने वाले. वो विकास का चाँद लाकर सजनिया के जूड़े में सजाने का वादा करता है. इन झूठों पर पैदल उसे नहीं जाना पड़ता, जो यकीन करते हैं – पैदल तो उनको जाना पड़ता है. वो जितनी नफ़ासत से झूठ बोलता है, ‘वी सपोर्ट अवर सजन’ उसके लिये उतना ही अधिक ट्रेंड करता है. गौर से देखिये श्रीमान, ‘सत्य के प्रयोग’ जैसी आत्मकथा के लेखक की समाधि पर, हाथों में श्रद्धा के पुष्प लेकर, वो परिक्रमा लगा रहा है. इस मासूमियत पर कौन ना मर जाये, या ख़ुदा !
सर्फ़ एक्सेल में दाग और राजनीति में झूठ अच्छे हैं. दोनों मुनाफ़ा दिलाते हैं. वो एक झूठा नारा सा गढ़ता है और करोड़ों सजनियाँ उसकी छाप का बटन दबा कर उसे उसके ख़ुदा तक पहुंचा देती हैं. वो मुफलिस सजनियों से सपोर्ट पाता है, रईसों की दौलत में इज़ाफा करने वाली पॉलिसी बनाता है. सजनियों को पता होता है कि वे छली जा रहीं हैं, मगर तब भी अभिभूत रहती हैं. ‘सजनवा बैरी हो गये हमार’. अब बैरी हो गये हैं तो क्या सपोर्ट करना बंद दें ? कभी कभी कांस्टीट्यूएन्सी में वे गाती हुई निकल पड़ती हैं – साजन साजन पुकारूँ गलियों में. मगर क्या करें, सजन बेवफ़ा बिजी है भोपाल, जयपुर, लखनऊ, पटना या दिल्ली में. पाँच साल बाद ही आ सकेंगे. वहाँ भी वे अकेले नहीं हैं. उनके साथ झूठे खबरची हैं, झूठी ख़बरें हैं, झूठे वीडियो हैं, डॉक्टर्ड फोटो हैं, मनगढ़ंत कहानियाँ हैं, झूठ का एक पूरा सेल है, झूठे हलफ़नामे हैं, घुमावदार बयान हैं, झांसेदार आंकड़े हैं, झूठ की आकाशगंगा में विचरते बेहया सितारे हैं.
वैसे इतना आसान भी नहीं है झूठ बोल पाना. कलर चेंज करना पड़ता है, झूठ सफ़ेद कर लिया जाये तो गले उतारने में आसानी रहती है. ये ऐरे-खैरों के बस का काम नहीं है. प्रजातंत्र के मंदिर के फ्लोर पर मेज ठोक-ठोक के बोलना पड़ता है. ली हुई शपथ भूलनी पड़ती है तब जाकर हिम्मत जुटा पता है बेवफा सजन.
बहरहाल, अब कब वापस आ रहे हैं सजन ? बताया ना अभी, पांच साल बाद, कुछ नये नारे, लुभावने जुमले, मीठे झूठ, फ़रेबी वादों के साथ आपका वोट चुराने आयेंगे वे. डेमोक्रेसी इतनी आसाँ नहीं है श्रीमान, इक झूठ का दरिया है. जो जितने गहरे में डूबा वो उतना ही शीर्ष पर पहुंचा है. तो झूठ क्यों नहीं बोले, बताईये भला ?
© शांतिलाल जैन
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