श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज पितृ दिवस के अवसर पर प्रस्तुत है “बाबा! मैं तुम्हें न भूल पाऊंगा”। )
☆ पितृ दिवस विशेष – बाबा! मैं तुम्हें न भूल पाऊंगा ☆
ऊंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया
जब भी गिरा तुमने उठाया
दौड़ने का साहस बढ़ाया
जब थक गया तो
अपने कांधे पर बिठाया
वो बचपन के दिन
मैं कैसे भूल पाऊंगा?
याद है मुझको स्कूल में
मेरा पहला दिन
रोते रहना, बिलखना तुम बिन
गिनती सिखाई
कांच की गोलियां गिन गिन
टाॅफियां खिलाई मां से छिन छिन
तुम्हारे सबक से ही तों
हमेशा जीवन में अव्वल आऊंगा।
पढ़ाई में मेरी सब कुछ लगा दिया
जो भी था गांठ में वो गंवा दिया
खुद भूखे रहकर रोटी मुझे खिला दिया
कुछ बनने की जिद
मुझमें जगा दिया
इस जिद से ही तों
मैं ऊंचाइयों पर चढ़ पाऊंगा।
आशीर्वाद से तुम्हारे
जीवन में बहार है
छोटा सा सुखी संसार है
हर कदम पर जीत है
ना कोई हार हैं
बस आज तुम नहीं हो
ये दुःख अपार है
तुम्हें खोने का ग़म
आंखों में कैसे छिपाऊंगा?
भारी व्यस्तताओं मे भी अवकाश लिया है
तुम्हारी बरसी पर तुम्हें याद किया है
पूजा कर एक प्रण लिया है
तुमसा बनने का बच्चों को वादा किया है
सोच में डूबा हूं
क्या मै तुमसा बन पाऊंगा?
बाबा! मैं तुम्हें न भूल पाऊंगा।
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
मो 9425592588
उत्कृष्ट रचना धर्मिता अनवरत प्रवाह अभिनंदन अभिवादन आदरणीय
धन्यवाद जी