(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर संस्मरण “हमारे मित्र डॉ लालित्य ललित जी”। श्री विवेक जी ने डॉ लालित्य ललित जी के बारे में थोड़ा लिखा ज्यादा पढ़ें की शैली में बेहद संजीदगी से यह संस्मरण साझा किया है।। इस संस्मरण को हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ साझा करने के लिए श्री विवेक जी का हार्दिक आभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 58 ☆
☆ संस्मरण – हमारे मित्र डॉ लालित्य ललित जी ☆
खाने के शौकीन, घुमक्कड़, मन से कवि, कलम से व्यंग्यकार हमारे मित्र लालित्य ललित जी!
गूगल के सर्च इंजिन में किसी खोज के जो स्थापित मापदण्ड हैं उनमें वीडियो, समाचार, चित्र, पुस्तकें प्रमुख हैं.
जब मैंने गूगल सर्च बार पर हिन्दी में लालित्य ललित लिखा और एंटर का बटन दबाया तो आधे मिनट में ही लगभग ३१ लाख परिणाम मेरे सामने मिले. यह खोज मेरे लिये विस्मयकारी है. यह इस तथ्य की ओर भी इंगित करती है कि लालित्य जी कितने कम्प्यूटर फ्रेंडली हैं, और उन पर कितना कुछ लिखा गया है.
सोशल मीडिया पर अनायास ही किसी स्वादिष्ट भोज पदार्थ की प्लेट थामें परिवार या मित्रो के साथ उनके चित्र मिल जाते हैं. और खाने के ऐसे शीौकीन हमारे लालित्य जी उतने ही घूमक्कड़ प्रवृत्ति के भी हैं. देश विदेश घूमना उनकी रुचि भी है, और संभवतः उनकी नौकरी का हिस्सा भी. पुस्तक मेले के सिलसिले में वे जगह जगह घूमते लोगों से मिलते रहते हैं.
मेरा उनसे पहला परिचय ही तब हुआ जब वे एक व्यंग्य आयोजन के सिलसिले में श्री प्रेम जनमेजय जी व सहगल जी के साथ व्यंग्य की राजधानी, परसाई जी की हमारी नगरी जबलपुर आये थे. शाम को रानी दुर्गावती संग्रहालय के सभागार में व्यंग्य पर भव्य आयोजन संपन्न हुआ, दूसरे दिन भेड़ागाट पर्यटन पर जाने से पहले उन्होने पोहा जलेबी की प्लेटस के साथ तस्वीर खिंचवाई और शाम की ट्रेन से वापसी की.
मुझे स्मरण है कि ट्रेन की बर्थ पर बैठे हम मित्र रमेश सैनी जी ट्रेन छूटने तक लम्बी साहित्यिक चर्चायें करते रहे थे.
इसके बाद उन्हें लगातार बहुत पढ़ा, वे बहुप्रकाशित, खूब लिख्खाड़ लेखक हैं. व्यग्यम की गोष्ठियो में हम व्यकार मित्रो ने उनकी किताबों पर समीक्षायें भी की हैं. मैं अपने समीक्षा के साप्ताहिक स्तंभ में उनकी पुस्तक पर लिख भी चुका हूं. वे अच्छे कवि, सफल व्यंग्यकार तो हैं ही सबसे पहले एक खुशमिजाज सहृदय इंसान हैं, जो यत्र तत्र हर किसी की हर संभव सहायता हेतु तत्पर मिलता है. अपनी व्यस्त नौकरी के बीच इस सब साहित्यिक गतिविधियो के लिये समय निकाल लेना उनकी विशेषता है.
वे बड़े पारिवारिक व्यक्ति भी हैं, भाभी जी और बच्चो में रमे रहते हुये भी निरंतर लिख लेने की खासियत उन्ही में है. इतना ही नही व्यंग्ययात्रा व्हाट्सअप व अब फेसबुक पर भी समूह के द्वारा देश विदेश के ख्याति लब्ध व्यंग्यकारो को जोड़कर सकारात्मक, रचनात्मक, अन्वेषी गतिविधियों को वे सहजता से संचालित करते दिखते हैं.
मैं उनके यश्स्वी सुदीर्घ सुखी जीवन की कामना करता हूं, व अपेक्षा करता हूं कि उनका स्नेह व आत्मीय भाव दिन पर दिन मुझे द्विगुणित होकर सदा मिलता रहेगा.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
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