श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “शिव संकल्प।  वास्तव में श्रीमती छाया सक्सेना जी की प्रत्येक रचना कोई न कोई सीख अवश्य देती है। व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन के कटु सत्य पर विमर्श करती यह सार्थक रचना हमें कई प्रकार से प्रेरित करती है, बस शिव संकल्प की आवश्यकता है।  इस कालजयी सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 24 ☆

☆ शिव संकल्प  

आचार, सदाचार, विचार, प्रचार, भ्रष्टाचार, दुराचार;

इन प्रत्ययों  ने तो नाक में दम कर दिया है। ये सत्य है कि दो और दो चार तो होते हैं; पर इनकी तो महिमा निराली है। लोग आचार- विचार करें या न करें किन्तु प्रचार अवश्य करेंगे। सदाचार का पाठ पढ़ते -पढ़ाते न जाने कितने भ्रष्टाचार और दुराचार इस जगत में हो रहे हैं । भ्रूण हत्या से शुरुआत होती है,  यदि वहाँ से बच निकले तो दुराचार की भेंट चढ़ जाने का खतरा सदैव मंडराता रहता है। यदि भाग्यवश इन दोनों खतरों को पार कर लिया तो अवश्य ही व्यक्ति पहले सदाचार  सीखेगा फिर सिखायेगा। इस सबके साथ- साथ उसे आसपास चल रहे  विभिन्न क्षेत्रों के प्रचार – प्रसार को भी झेलना होगा  या इसका अंग बन कर स्वयं भी इसमें कूद जाना पड़ेगा।

अब जब इन सबसे विजयी होकर कर्मभूमि पर उतरो तभी से भ्रष्टाचार का प्रवेश शुरू हुआ समझो। कोई भी कार्य इसके बिना पूरा ही नहीं होता। हर व्यक्ति इसी की दुहाई देता हुआ मिल जायेगा कि  ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार छाया हुआ, कोई भी कार्य बिना बड़ी पहचान होते ही नहीं, भलाई का जमाना ही नहीं रहा।

महंगाई तो इसके साथ  अमरबेल की तरह पनपती रहती है। बस कोई आधार मिला तो समझो निराधार आरोपों का दौर शुरू हुआ, लेनदेन से क्या नहीं हो सकता, सारे समझौते इसी से शुरू हो इसी पर खत्म होते हैं। ये कोरोना थोड़ी है; जो बढ़ता ही जाए, इसे दूर करना ही होगा। जागरूक लोग क्या नहीं कर सकते, जब एक प्रेमी कल्पना में ही सही आसमान से तारे तोड़ कर ला सकता है तो क्या समझदार भारतीय नागरिक भ्रष्टाचार रूपी अमरबेल को उखाड़ कर नहीं फेक सकता है क्या…?

फेक न्यूज के विशाल सागर में; डूबने- उतराने  से बेहतर है,  कि कोई ठोस कदम उठा कर देश और समाज को स्वस्थ बना;  कुरीतियों को दूर कर सदाचारी व नेक इंसान बनें। मेहनत पर विश्वास कर आगे बढ़ें तो अवश्य ही भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारी का मुँह काला होगा, बस ऐसा शिव संकल्प लेने की जरूरत हम सबको है।

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना

Chhaya saxena

जी, हार्दिक धन्यवाद