श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक अतिसुन्दर व्यंग्य “व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप ।  श्री विवेक जी ने  तटस्थ होकर सार्थक विषय पर विमर्श किया है।  मुझे अक्सर ऐसा साहित्य पढ़ने को मिल रहा है जिसमें स्त्री और पुरुष साहित्यकार  एक दूसरे के मन की विवेचना अत्यंत संजीदगी से कर रहे हैं या एक दूसरे के क्षेत्र में अपनी भूमिकाएं निभा रहे हैं । इस सार्थक व्यंग्य के लिए श्री विवेक जी  का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्या # 59 ☆

☆ व्यंग्य  – व्यंग्य में महिला हस्तक्षेप  ☆

मेरी एक कविता में मैंने लिखा है कि आज की नारी ने जींस तो पहन लिया है, पर पारम्परिक साड़ी यथावत है, आशय है कि स्त्री को हर क्षेत्र में दोहरी भूमिका निभानी पड़ रही है. बड़े पदों पर स्त्री को अतिरिक्त सतर्क रहना होता है कि कोई यह न कहे कि अरे वो तो महिला हैं.

व्यंग्य के क्षेत्र में भी महिला व्यंग्यकार अपनी अन्य पारिवारिक व कार्यालयीन जिम्मेदारियो के साथ  बहुत महत्वपूर्ण लेखन कर रही हैं. यह भी सही है कि महिला होने के नाते प्रकृति दत्त गुणो के चलते कई जगह महिला लेखिकाओ पर संपादको, प्रकाशको या पाठको का सहज अतिरिक्त ध्यान जाता ही है. जिसके लाभ व हानि अवश्यसंभावी हैं.

प्रश्न है कि  क्या व्यंग्य रचना का मूल्यांकन यह देखकर किया जाय कि व्यंग्यकार स्त्री है या पुरूष ?  क्या लेखिका ही स्त्री मन को समझ सकती है ? मुझे लगता है कि व्यंग्यकार को स्त्री या पुरूष के खेमो में नहीं बांटा जाना चाहिए.  जब व्यंग्य लिखा जाता है तो विसंगतियो पर प्रहार होता है. सबसे अच्छा व्यंग्यकार वही होता है जो ” बुरा जो देखन मैं चला मुझसे बुरा न कोय “, मतलब स्वयं पर अंगुली उठाने का साहस करे. हो सकता है कि कुछ विशेष विषयो पर व्यंग्यकार अपनी स्वयं की परिस्थति परिवेश के अनुरूप पक्षपात कर जाता हो पर तटस्थ लेखन ही लोकप्रिय होता है. यह बिन्दु महिला व्यंग्यकारो पर भी लागू होता है.

अनेक व्यंग्यकार या चुटकुलो में पत्नी पर, साली पर, महिलाओ पर कटाक्ष किये जाते हैं, किन्तु महिलाये  अपनी जिजिविषा से इस सब को गलत सिद्ध करती बढ़ रही हैं. स्त्री समानता के इस समय में जितने जल्दी स्त्री विमर्श पीछे छूट जावे, समाज के लिये बेहतर होगा. व्यंग्यकार के पास सोच का अलग दायरा होता है, अतः हमें तो व्यंग्य में स्त्री समानता को बढ़ावा व सम्मान देना ही चाहिये. परिहास की बात अलग है, जिसमें मैं अपनी पत्नी के पात्र के जरिये कई बार व्यंग्य लिख देता हूं, पर अंतरमन से मैं पूरा फेमनिस्ट हूं.

पहली स्त्री व्यंग्यकार किसे कहा जावे यह शोध का विषय है, मुझे सूर्यबाला जी, अमृता प्रीतम जी,जबलपुर की सुधारानी श्रीवास्तव जिन्होने परसाई जी के प्रभाव में कुछ व्यंग्य रचनायें की  या बचपन में पढ़े हुये शिवानी जी के कुछ तंज वाले पैराग्राफ भी स्मरण आते हैं.  व्यंग्य शैली में इक्का दुक्का रचनायें तो अनेक लेखिकाओ की मिल जायेंगी. कविता, विशेष रूप से नई कविता के समय में कई कवियत्रियों ने भी चुटकुलो को व्यंग्य कविता में पिरोया है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

image_print
1 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

सुंदर विष्लेषण