डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य e-abhivyakti के माध्यम से काफी पढ़ा एवं सराहा जाता रहा है। अब आप समय-समय पर उनकी रचनाओं को पढ़ते रहेंगे । इसके अतिरिक्त हम प्रति रविवार उनका साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक से उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे।  आज प्रस्तुत है उनकी लघुकथा – “भलाई” जो निश्चित ही  आपको  है  जीवन में घट रही घटनाओं के विश्लेषण के लिए विचार करने हेतु  बाध्य करेगी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)
☆ परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 2 ☆

☆ भलाई ☆

बैंक का काउंटर। गहमागहमी। पैसा निकालते, जमा करते, बेंचों पर अपनी बारी का इंतज़ार करते लोग। दरवाज़े पर बंदूकधारी दरबान।

कैश काउंटर पर पैसा निकालकर उसे गिनते हुए एक व्यापारी। नोटों की मोटी मोटी गड्डियाँ। बगल में दबा हुआ चमड़े का बैग।

तभी बगल में खड़ा एक सामान्य वस्त्रों वाला लड़का बोला, ‘देखिए, आपका नोट गिर गया।’

व्यापारी ने गिनना रोककर घूरकर पहले लड़के को देखा, फिर पैरों के पास पड़े दस के नोट की तरफ। फिर उसने बिना गिने ही नोटों को बैग में ठूँसना शुरू कर दिया। सब गड्डियाँ ठूँस देने के बाद उसने बैग कैशियर की तरफ बढ़ा दिया। कहा, ‘ज़रा रखना।’

फिर उसने घूमकर लड़के का कालर पकड़ लिया। घूँसे ही घूँसे। लड़के की नाक से रक्त बहने लगा। दौड़-भाग मच गयी। कर्मचारी भी दौड़े। बाहर से दरबान भागता आया। ‘क्या बात है? क्या हुआ?’

व्यापारी लड़के का कालर पकड़े, हाँफते हाँफते बोला, ‘साला ठग है। नीचे पड़ा हुआ नोट दिखाकर मेरा पैसा पार करना चाहता था।मैं बेवकूफ नहीं हूँ।’

लड़का हतप्रभ और दर्द से बेहाल। तभी बेंच पर से गोल टोपी लगाये एक वृद्ध उठे। लड़के की हालत देखकर मर्माहत होकर बोले, ‘अरे यह क्या? इसे क्यों मारा?’

एक क्लर्क भी बोला, ‘यह शेवड़े जी का लड़का है। महाराष्ट्र स्कूल में पढ़ता है। यह ऐसा काम नहीं करेगा।’

लड़का अपनी साँस वापस पाकर आँखों में आँसू लिये बोला, ‘नोट आपके कुर्ते की जेब से गिरा था। ज़रा देखिए।’ उसने कुर्ते की जेब की तरफ इशारा किया।

व्यापारी ने देखा, एक और दस का नोट कुर्ते की जेब से सटकने के चक्कर में बाहर झाँक रहा है।

व्यापारी सिकुड़ गया। जेब से रूमाल निकालकर लड़के का खून पोंछा। वृद्ध से हाथ जोड़कर बोला, ‘साहब, बहुत गलती हो गयी। मैं क्या करूँ?आजकल लोग इसी तरह ठगते हैं। लड़के ने तो अच्छे मतलब से कहा था, लेकिन मुझे भरोसा नहीं हुआ।’

मामला ठंडा हो गया। जल्दी ही सब कुछ सामान्य हो गया और दरबान फिर दरवाज़े पर मुस्तैद हो गया। लेकिन अति-सावधानी का कीड़ा जो पहले व्यापारी के दिमाग़ में कुलबुलाता था, अब उड़ कर लड़के के दिमाग़ में कुलबुल करने लगा।

© कुन्दन सिंह परिहार
जबलपुर (म. प्र.)
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