डॉ कुन्दन सिंह परिहार
बाबूलाल का उस दफ्तर में करीब पांच सौ का बिल पड़ा है। तीन-चार महीने गुज़र गये हैं लेकिन बिल का अता-पता नहीं है। जब भी बाबूलाल दफ्तर जाता है, बिल पास करनेवाला बाबू उसकी नाक के सामने अपना रजिस्टर रख देता है। कहता है, ‘यह देखो,हमने तो पास करके भेज दिया है। कैशियर के पास होना चाहिए। हमने अपना काम चौकस कर दिया।’
बाबूलाल गर्दन लम्बी करके रजिस्टर में झाँकता है,पूछता है, ‘किसने रिसीव किया है?’
बाबू कहता है, ‘अरे ये गुचुर पुचुर कर दिया है। पता ही नहीं चलता किसके दस्कत हैं।’
बाबूलाल कहता है, ‘थोड़ा रजिस्टर देते तो मैं कैश में दिखाऊँ।’
बाबू बित्ता भर की जीभ निकालता है, कहता है, ‘अरे बाप रे! आफिशियल डाकुमेंट दफ्तर से बाहर कैसे जाएगा? अनर्थ हो जाएगा।’
कैश वाला बाबू सुंघनी चढ़ाता हुआ अपना रजिस्टर दिखाता है, कहता है, ‘हमारे रजिस्टर में कहीं एंट्री नहीं है। बिल होता तो कहीं एंट्री होती।’ फिर बगल में बैठी महिला से कहता है, ‘देखो, इनका कोई चेक बना है क्या।’
महिला, उबासी लेती, फाइल में रखे चेकों को खंगालती है,फिर सिर हिलाकर घोषणा करती है कि नहीं है।
बाबूलाल पन्द्रह बीस दिन में पाँव घसीटता पहुँच जाता है। हर बार उसे दोनों रजिस्टर सुंघाये जाते हैं, और हर बार चेक वाली महिला सिर हिला देती है।
एक दिन बाबूलाल भिन्ना जाता है। बिल पास करनेवाले से कहता है, ‘तुम्हारे रजिस्टर को देख के क्या करें? हर बार नाक पर रजिस्टर टिका देते हो।’ गुस्से में अफसर के पास जाकर शिकायत करता है तो वे कहते हैं, ‘डुप्लीकेट बिल बनाकर ले आओ।’
बाबूलाल दुबारा बिल बना देता है। पास करनेवाले बाबू के पास जाता है तो वह बिल पर चिड़िया बनाकर कहता है, ‘कैश से लिखवाना पड़ेगा कि भुगतान नहीं हुआ।’
बाबूलाल सुंघनी वाले बाबू के पास पहुँचता है। बाबू बिल देखकर महिला की तरफ बढ़ा देता है। महिला देखकर सोच में डूब जाती है, बुदबुदाती है, ‘कैशबुक देखनी पड़ेगी।’
फिर भारी दुख से बाबूलाल की तरफ देखकर कहती है, ‘सोमवार को आ जाओ। हम देख लेंगे।’
सोमवार को बाबूलाल पहुँचता है तो कैश वाला बाबू चुटकी से नसवार का सड़ाका लगाता है, फिर कहता है, ‘तुम्हारा पुराना बिल मिल गया।’
बाबूलाल चौंकता है, पूछता है, ‘बिल मिल गया?’
बाबू नाक के निचले गन्दे हिस्से को गन्दे तौलिया से पोंछते हुए कहता है, ‘हाँ,कागजों में दब गया था। ढूँढ़ा तो मिल गया। कल आकर चेक ले लो।’
बाबूलाल के जाने के बाद बाबू तौलिया झाड़ता हुआ महिला से शिकायती लहज़े में कहता है, ‘पाँच सौ रुपल्ली के बिल के पीछे दिमाग खा गया। कुछ लोग बड़े सनकी होते हैं।’