श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)

☆ आलेख # 57 ☆ देश-परदेश – गधा ☆ श्री राकेश कुमार ☆

ये शब्द सुनते ही पाठशाला “मॉडल हाई स्कूल” जबलपुर के आदरणीय शिक्षक उपाध्याय जी के साथ पच्चास वर्ष पूर्व हुई एक चर्चा की स्मृति मानस पटल पर आ गई।

मॉडल हाई स्कूल, हमेशा हायर सेकंडरी की राज्य स्तरीय योग्यता सूची में सबसे अधिक स्थान प्राप्त करता था। इस विषय पर मैंने नवमी कक्षा का छात्र होते हुए शिक्षक से कहा, जब कक्षा छः के प्रवेश के समय भी उच्चतम अंक प्राप्त छात्रों को ही प्रवेश दिया जाता है। वो तो “घोड़े” होते है, कम अंक (गधे) प्राप्त छात्रों को मैट्रिक की मेरिट में लेकर आएं तो पाठशाला की क्षमता मानी जा सकती हैं।

शिक्षक भी हाजिर जवाब थे, और तुरंत बोले छः वर्ष तक घोड़े को घोड़ा बना रहने देते है, ये क्या कम हैं ? उनकी बात में वजन था। हमने भी उनसे क्षमा मांग कर उनका सम्मान बनाए रखा।

“मेरा गधा गधों का लीडर ” स्वर्गीय शम्मी कपूर जी का एक पुरानी फिल्म का गीत दूर कहीं बज रहा था। तभी एक मित्र ने उपरोक्त फोटो भेजी जिसमें एक पाकिस्तानी युवा अपनी नई नवेली पत्नी को “गधा” भेंट कर रहा हैं। फोटू का शीर्षक “एक गधा, गधा भेंट करते हुए”।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क – B 508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान)

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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