श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक विचारणीय एवं भावप्रवण कविता  “किसना / किसान । श्री विवेक जी  ने इस कविता के माध्यम से सामान्य किसानों  की पीड़ा पर विमर्श ही नहीं किया अपितु  पीड़ितों को उचित मार्गदर्शन भी दिया है। इस अतिसुन्दर एवं सार्थक कविता  के लिए श्री विवेक जी  का हार्दिक आभार। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 62 ☆

☆ किसना / किसान ☆

किसना जो नामकरण संस्कार के अनुसार

मूल रूप से कृष्णा रहा होगा

किसान है,

पारंपरिक,पुश्तैनी किसान !

लाख रूपये एकड़ वाली धरती का मालिक

इस तरह किसना लखपति है !

मिट्टी सने हाथ,

फटी बंडी और पट्टे वाली चड्डी पहने हुये,

वह मुझे खेत पर मिला,

हरित क्रांति का सिपाही !

 

किसना ने मुझे बताया कि,

उसके पिता को,

इसी तरह खेत में काम करते हुये,

डंस लिया था एक साँप ने,

और वे बच नहीं पाये थे,

तब न सड़क थी और न ही मोटर साइकिल,

गाँव में !

 

इसी खेत में, पिता का दाह संस्कार किया था

मजबूर किसना ने, कम उम्र में,अपने काँपते हाथों से !

इसलिये खेत की मिट्टी से,

भावनात्मक रिश्ता है किसना का !

वह बाजू के खेत वाले गजोधर भैया की तरह,

अपनी ढ़ेर सी जमीन बेचकर,

शहर में छोटा सा फ्लैट खरीद कर,

कथित सुखमय जिंदगी नहीं जी सकता,

बिना इस मिट्टी की गंध के !

 

नियति को स्वीकार,वह

हल, बख्खर, से

चिलचिलाती धूप,कड़कड़ाती ठंडऔर भरी बरसात में

जिंदगी का हल निकालने में निरत है !

किसना के पूर्वजों को राजा के सैनिक लूटते थे,

छीन लेते थे फसल !

मालगुजार फैलाते थे आतंक,

हर गाँव आज तक बंटा है, माल और रैयत में !

 

समय के प्रवाह के साथ

शासन के नाम पर,

लगान वसूली जाने लगी थी किसान से

किसना के पिता के समय !

 

अब लोकतंत्र है,

किसना के वोट से चुन लिया गया है

नेता, बन गई है सरकार

नियम, उप नियम, उप नियमों की कँडिकायें

रच दी गई हैं !

 

अब  स्कूल है,

और बिजली भी,सड़क आ गई है गाँव में !

सड़क पर सरकारी जीप आती है

जीपों पर अफसर,अपने कारिंदों के साथ

बैंक वाले साहब को किसना की प्रगति के लिये

अपने लोन का टारगेट पूरा करना होता है!

 

फारेस्ट वाले साहेब,

किसना को उसके ही खेत में,उसके ही लगाये पेड़

काटने पर,नियमों,उपनियमों,कण्डिकाओं में घेर लेते हैं !

 

किसना को ये अफसर,

अजगर से कम नहीं लगते, जो लील लेना चाहते हैं, उसे

वैसे ही जैसे

डस लिया था साँप ने किसना के पिता को खेत में !

 

बिजली वालों का उड़नदस्ता भी आता है,

जीपों पर लाम बंद,

किसना अँगूठा लगाने को तैयार है, पंचनामें पर !

उड़नदस्ता खुश है कि एक और बिजली चोरी मिली !

 

किसना का बेटा आक्रोशित है,

वह कुछ पढ़ने लगा है

वह समझता है पंचनामें का मतलब है

दुगना बिल या जेल !

 

वह किंकर्तव्यविमूढ़ है, थोड़ा सा गुड़ बनाकर

उसे बेचकर ही तो जमा करना चाहता था वह

अस्थाई,बिजली कनेक्शन के रुपये !

पंप, गन्ना क्रशर, स्थाई, अस्थाई कनेक्शन के अलग अलग रेट,

स्थाई कनेक्शन वालों का ढ़ेर सा बिल माफ, यह कैसा इंसाफ !

किसना और उसका बेटा उलझा हुआ है !

उड़नदस्ता उसके आक्रोश के तेवर झेल रहा है,

संवेदना बौनी हो गई है

नियमों,उपनियमों,कण्डिकाओं में बँधा उड़नदस्ता

बना रहा है पंचनामें, बिल, परिवाद !

किसना किसान के बेटे

तुम हिम्मत मत हारना

तुम्हारे मुद्दों पर, राजनैतिक रोटियाँ सेंकी जायेंगी

पर तुम छोड़कर मत भागना खेत !

मत करना आत्महत्या,

आत्महत्या हल नहीं होता समस्या का !

तुम्हें सुशिक्षित होना ही होगा,

बनना पड़ेगा एक साथ ही

डाक्टर, इंजीनियर और वकील

अगर तुम्हें बचना है साँप से

और बचाना है भावना का रिश्ता अपने खेत से !

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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Shyam Khaparde

अच्छी रचना

Shiv kumar rajak

Nice sir